नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव में मिली जीत की संजीवनी के बाद कांग्रेस नए जोश के साथ चुनावी तैयारी में उतरने की कोशिश में जुटी है। नए अध्यक्ष की ताजपोशी के करीब आठ महीने बाद पार्टी अब जल्द ही नीति निर्धारक कांग्रेस कार्यसमिति का गठन करने की कोशिश में है। जिस तरह की तैयारी की जा रही है, उससे साफ लग रहा है कि कांग्रेसाध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की कार्यसमिति पर भी चुनावी परछाई नजर आएगी, ताकि पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले आम चुनाव में पार्टी मजबूती के साथ भाजपा को टक्कर देकर खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल कर सके।

सियासी पंडितों के अनुसार पिछले एक डेढ़ महीने से चल रही पार्टी की आंतरिक कवायद में इस बात पर जोर है कि कहीं से भी पार्टी के कमजोर या हताश होने का संदेश नहीं जाना चाहिए। खासकर हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस पक्ष में बन रहे माहौल को बनाए रखना चाह रही है।

कांग्रेस कार्यसमिति के गठन के साथ कांग्रेस पहले अपना घर मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। कार्यसमिति गठन के साथ केंद्र में सक्रिय कई नेताओं को राज्यों की राजनीति में वापस भेजने पर मंथन चल रहा है। इसकी शुरुआत शक्तिसिंह गोहिल को गुजरात का नया प्रदेशाध्यक्ष बनाकर की जा चुकी है। महाराष्ट्र के प्रभारी एचके पाटिल के कर्नाटक में मंत्री बन जाने के बाद वहां भी नई नियुक्ति की तैयारी है तो राजस्थान में चुनावों के चलते गुजरात प्रभारी रघु शर्मा व पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी को भी जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है। कई राज्यों में निष्क्रिय प्रभारी भी बदले जा सकते हैं।

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपसी खटपट को खत्म करने की है। मध्यप्रदेश में तो पार्टी ने हालात काफी हद तक काबू कर लिए हैं। छत्तीसगढ़ में भी बुधवार को स्वास्थ्य मंत्री टीके सिंह देव को उप मुख्यमंत्री का दर्जा देकर आपसी दरार पाटने की कोशिश की गई है। राजस्थान का मसला अभी अटका हुआ है। इसका भी अगले हफ्ते तक रास्ता निकाल लेने की उम्मीद जताई जा रही है। सम्भव है नई कार्यसमिति में सचिन पायलट को अहम भूमिका देकर राजस्थान का रास्ता साफ कर दिया जाए।

चुनाव से पहले ही आक्रामक रुख अपना रही भाजपा को भी कांग्रेस उसकी भाषा में ही जवाब देने की रणनीति पर है। मध्यप्रदेश में नर्मदा पूजन के साथ चुनाव अभियान की शुरुआत और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी व अन्य नेताओं के मंदिर-देवरों पर माथा टेकने की नीति से वह भाजपा के हिन्दुत्व का जवाब ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ से देने की कोशिश कर रही है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे पर भी कांग्रेस खुलकर विरोध में नहीं आई है। उसकी ओर से इतना ही कहा गया है कि भाजपा मुद्दों से ध्यान अटकाने के लिए यूसीसी की बात कर रही है।

कांग्रेस आगामी चुनावों में गैर भाजपा वोटों का बंटवारा रोकने पर जोर दे रही है। यही कारण है कि वह गैर भाजपा दलों को साधने के लिए ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’ वाली नीति अपना रही है। विपक्षी दलों की पटना में हुई महाबैठक में कांग्रेस ने लचीलापन तो दिखाया ही, वहीं एकता में बाधक बन रहे आम आदमी पार्टी (आप) व तेलंगाना के सीएम केसीआर की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) दलों को मजबूती के साथ जवाब भी कांग्रेस की ‘गम्भीर’ तैयारी का संकेत दे रहा है। कांग्रेस महागठबंधन के लिए बेंगलुरू में विपक्षी दलों की बैठक की मेजबानी करेगी। पहले यह बैठक शिमला में होनी थी, लेकिन मौसम को देखते हुए बैठक का स्थान बदला गया है।

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