सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज के लिए अदालतों को अभियुक्तों की रिहाई से इनकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए.
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने भ्रष्टाचार के एक मामले में एक सरकारी अधिकारी की अग्रिम जमानत खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने इस बात पर अफसोस जताया कि भ्रष्टाचार में बहुत खतरनाक आशंकाएं हैं.
सुप्रीम कोर्ट पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ एक लोक सेवक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसे राहत देने से इनकार कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के तहत पटियाला में उसके खिलाफ दर्ज मामले में उसकी अग्रिम जमानत खारिज कर दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर एक ग्राम पंचायत में विकास कार्यों के ऑडिट के लिए रिश्वत मांगने का आरोप है. बेंच ने तीन मार्च के अपने आदेश में कहा, ‘यदि भ्रष्टाचार की भयावहता के बारे में जनता द्वारा जो कुछ कहा जाता है, उसका एक अंश भी सत्य है, तो यह सत्य से बहुत दूर नहीं होगा कि उच्च पदस्थ व्यक्तियों द्वारा दंडाभाव में किए जा रहे व्यापक भ्रष्टाचार के कारण ही इस देश में आर्थिक अशांति पैदा हुई है.’
आदेश में कहा गया है कि अगर किसी से पूछा जाए कि हमारे समाज की समृद्धि की ओर प्रगति में बाधा डालने वाला एकमात्र कारक क्या है, तो वह भ्रष्टाचार है. कोर्ट ने कहा कि सरकार और राजनीतिक दलों के उच्च स्तरों पर बैठे भ्रष्ट तत्वों का खतरा, विकासशील देश के समाज में कानून और व्यवस्था पर हमला करने वाले किराए के हत्यारों से भी कहीं अधिक है.
कोर्ट ने कहा कि निर्दोष होने की धारणा ही अग्रिम जमानत देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती. पीठ ने कहा कि निर्दोष होने की धारणा एक ऐसा कारक है जिस पर अदालत को अग्रिम जमानत की याचिका पर विचार करते समय ध्यान देने की आवश्यकता है, लेकिन उचित नियम यह है कि आरोपी के पक्ष और सार्वजनिक न्याय के पक्ष के बीच संतुलन बनाया जाए.
पीठ ने कहा, ‘यदि भ्रष्टाचार मुक्त समाज सुनिश्चित करने के लिए किसी आरोपी को स्वतंत्रता से वंचित किया जाना है, तो अदालतों को ऐसी स्वतंत्रता से इनकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए.’