ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उनके विदेशमंत्री सहित नौ अधिकारियों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत तेहरान के लिए जबर्दस्त झटका है।

अभी इसके पीछे कोई साजिश नहीं बताई गई है परंतु अनधिकृत तौर पर इसे इस्रइल और अमेरिका का षड्यंत्र बताया जा रहा है। अभी इस स्टेज खुद ईरान भी चुप है।

अजरबैजान में संयुक्त बांध का उद्घाटन करने गए राष्ट्रपति रईसी के काफिले में शामिल दो अन्य हेलीकॉप्टर सुरक्षित लौट भी आए हैं, लेकिन इसका मतलब यह कि ईरान बाद में किसी दुश्मन साजिश, अगर वह हुई तो, उसका नाम नहीं लेगा या उसका पर्दाफाश नहीं करेगा।

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने संविधान के अनुसार मोहम्मद मोखबर को अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त कर दिया है, जो अभी उपराष्ट्रपति हैं। यह अपने देश व दुनिया को संकेत है कि तेहरान झटके सहते हुए कामकाज को आगे बढ़ा सकता है।

पर खामेनेई का कदम उन सवालों को नहीं रोकेगा जो दुर्घटना के कारणों के बारे में अनिवार्य रूप से उठेंगे। मोखबर पर इसकी जांच के लिए आयोग का गठन कर सच बताने की जिम्मेदारी होगी। अमेरिकी प्रतिबंधों एवं परमाणु करार रद्द करने के बाद से वह इससे अलग हो गया है।

अभी तो वह इस्रइल-फिलिस्तीन संघर्ष में इस्रइल पर हमलावर रहा है। वह चीन-रूस की धुरी वाली दुनिया के साथ डोनाल्ड ट्रंप के परमाणु समझौता रद्द करने के बाद से ही है। इसमें उसके साथ तुर्की, अजरबैजान, सीरिया और जोर्डन हैं। ईरान में अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से कट्टरपंथी तत्वों को अग्रसर होने का आधार मिल गया है।

रईसी इसी जमात के कट्टर राजनीतिक थे, उन पर सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य के रूप में पांच हजार वामपंथी-उदारवादियों की सामूहिक फांसी के फैसले में संलिप्तता बताई गई है। वे हिजाब के खिलाफ भी ईरान में प्रदशर्नों को दबाने में सरकारी बल प्रयोग में गई सैकड़ों जानें जाने को भी टालते रहे थे, लेकिन रईसी उनकी मौत न केवल ईरान एवं उनके मित्र देशों के लिए बल्कि भारत जैसे तटस्थ देशों के लिए भी दर्दनाक हादसा है।

13 मई को ही उन्होंने भारत को चाबहार बंदरगाह के एक टर्मिंनल के प्रबंधन का कीमती उपहार सौंपा था। यह नई दिल्ली की बड़ी रणनीतिक, व्यापारिक और कूटनीतिक जीत थी। जो चीन के बीआरआई परियोजना का जवाब है। इस समझौते के लिए रईसी ज्यादा उतावले थे। वे तकादा करते रहे थे। रईसी की मौत भारत के लिए भी अपूरणीय क्षति है।

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