सयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह से लड़ने का प्रस्ताव अपनाया जिसे पाकिस्तान द्वारा पेश किया गया था। इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर यूएन के प्रस्ताव पर पक्ष में 115 सदस्यों ने वोट दिए।
इसके विपक्ष में कोई वोट नहीं पड़ा जबकि भारत, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, यूक्रेन, इटली और ब्रिटेन समेत 44 देश अनुपस्थित रहे। भारत ने मतदान से बचते हुए यहूदी विरोध, ईसाईफोबिया, इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की कड़ी निंदा की।
दुनिया में 1.2 अरब अनुयायियों वाला धर्म हिन्दू, 53.5 करोड़ अनुयायियों वाला बौद्ध धर्म और तीन करोड़ से ज्यादा अनुयायियों वाला सिख धर्म आदि धार्मिक पूर्वाग्रहों की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
भारत सरकार के अनुसार यह फोबिया अब्राहिमी धर्मो से परे भी फैला हुआ है। अब्राहिम यानी यहूदी, ईसाई और मुसलमान को मिला कर बना धर्म। यह सच है कि गैर-अब्राहिमी धर्मो के अनुयायी भी दशकों से धार्मिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा, भारत अनेकवाद का चैंपियन है। दुनिया में जिस किसी को भी उसके धर्म के आधार पर अत्याचार सहना पड़ा, भारत ने उसे शरण दी है। यह सच है कि भारत में पारसी, बौद्ध और यहूदियों समेत हर किसी को शरण दी जाती है जहां उन पर धार्मिक आधार पर अत्याचार नहीं होते।
भारत की संस्कृति और संविधान में भी यह नजर आता है। धार्मिक फोबिया का प्रत्यक्ष प्रमाण मंदिरों, गुरुद्वारों और मोनेस्ट्री पर हमले कहे जा सकते हैं। इसमें बामियान बुद्ध का ध्वंस, सिखों का नरसंहार, मंदिरों पर हमले और मूर्तियां तोड़ना गैर-अब्राहिम धर्मो के खिलाफ फोबिया दिखाता है।
अपने यहां धर्मारित दंगों या मार-काट के पीछे हमेशा राजनीति रही है वरना आम जनता के भीतर सहिष्णुता और अन्य धर्मो के प्रति सम्मान का भाव ही नजर आता है। पूर्वाग्रह किसी भी धर्म को लेकर हो सकता है।
धार्मिक आधार पर लोगों को बांटना कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। खासकर पाकिस्तान को अपने गिरहबान में झांकना चाहिए जहां अल्पसंख्यकों के शोषण, उन्हें आतंकित करने और उनकी लड़कियों के रेप की खबरें जब-तब आती रहती हैं। दुनिया का ध्यान भटकाने का पाक का यह प्रयास फिजूल सिद्ध हुआ ही कहा जाएगा।