भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह को लेकर बड़ा बयान दिया है। डीवाई चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संवैधानिक मुद्दों पर दिए गए फैसले कई बार अंतरात्मा की आवाज से दिए जाते हैं। वह समलैंगिक विवाह मामले में अपने अल्पमत फैसले पर कायम हैं।
बता दें कि हाल ही में समलैंगिक विवाह को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। जिसमें शीर्ष न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, लेकिन सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के पक्ष में थे।
वॉशिंगटन स्थित जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, वह समलैंगिक जोड़ों के नागरिक संघों के पक्ष में अपने अल्पमत के फैसले पर कायम हैं, क्योंकि कभी-कभी यह ‘विवेक का वोट और संविधान का वोट’ होता है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने समान लिंग मामले में अपने फैसले के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि ‘मैं अल्पमत में था, जहां मैंने माना कि समलैंगिक जोड़े एक साथ रह सकते हैं, तो वे बच्चे गोद ले सकते हैं। तब मेरे तीन सहयोगियों का मानना था कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति न देना भेदभावपूर्ण है।
सीजेआई ने बताया कि, बेंच के सभी पांच जजों के आम सहमति से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि हमने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने और क्वीर समुदाय के लोगों को हमारी समाज में बराबरी का अधिकार देने की दिशा में काफी प्रगति कर ली है। इस दौरान जजों में शादी का अधिकार और बच्चा गोद लेने के अधिकार के मुद्दे पर मतभेद रहे।
सीजेआई ने कहा कि, ‘2018 में हमने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को पलट दिया, जहां हमने सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था और यह LGBTQIA+ के अधिकारों का अंत नहीं था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सभी न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि विवाह समानता लाने के लिए कानूनों में संशोधन करना संसद की भूमिका में आता है।
उन्होंने कहा कि 1950 में अपनी स्थापना से लेकर आज तक भारत के सुप्रीम कोर्ट से दिए गए सभी संविधान पीठ के फैसलों में से केवल तेरह ऐसे उदाहरण हैं, जहां चीफ जस्टिस अल्पमत में थे। ये उनमें से एक मौका था।