तुर्की आज एक ऐतिहासिक चुनावी मोड़ पर है। रविवार को हो रहे राष्ट्रपति और संसद के चुनाव में यहां के करीब 6 करोड़ चालीस लाख मतदाताओं को दो प्रमुख दावेदारों में से किसी एक को चुनना है। ये दोनों उम्मीदवार तुर्की के भविष्य के लिए नाटकीय रूप से अलग-अलग रास्ते पेश करते हैं। इस चुनाव में 20 साल से सत्ता पर काबिज रेचेप तैय्यप अर्दोआन को विपक्षी नेता कमाल कलचदारलू चुनौती दे रहे हैं, जिन्हें अपनी कार्यशैली तथा चेहरे के साम्य के कारण तुर्की का गांधी भी कहा जाता है। इस चुनाव से साफ होगा कि तुर्की के मतदाता अर्दोआन का इस्लामिक तिलिस्म तोड़ पाएंगे या नहीं।
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कमाल कलचदारलू 10 प्रतिशत अधिक लोकप्रिय

50 प्रतिशत वोट होंगे जरूरीराष्ट्रपति अर्दोआन की पार्टी का संक्षिप्त नाम एकेपी है और इसे अंग्रेजी में जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी कहा जाता है। वहीं, अर्दोआन के खिलाफ संयुक्त रूप से तुर्किये के छह मुख्य विपक्षी दलों (सीएचपी, मध्य-दक्षिणपंथी आईवाईआई पार्टी, इस्लामिस्ट फेलिसिटी पार्टी, डेमोक्रेट पार्टी, देवा और फ्यूचर पार्टी) ने एक साथ आने का फैसला लिया है और कमाल कलचदारलू को अपना प्रत्याशी बनाया है।

छह पार्टियों के इस गठबंधन को ‘टेबल ऑफ सिक्स’ का नाम दिया गया है। ये ‘टेबल ऑफ सिक्स’ राष्ट्रपति अर्दोआन द्वारा बनाई गई राष्ट्रपति प्रणाली को भी बदलने के लिए इकट्ठा हुए हैं। इस प्रणाली को बदलने के लिए उन्हें चुनाव में 600 में से कम से कम 360 संसद की सीटें लानी होंगी। वहीं राष्ट्रपति पद पर कब्जा करने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत वोट हासिल करने होंगे।

अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत वोट नहीं मिले तो सर्वाधिक वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे राउंड का मतदान होगा। लेकिन अगर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की मानें तो अर्दोआन विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार नेता कमाल कलचदारलू से करीब 10 प्रतिशत अधिक लोकप्रिय बने हुए थे।

कमाल या फिर अर्दोआन का तुर्की

रविवार के चुनाव के नतीजों से ये साफ़ हो जाएगा कि तुर्की की जनता अर्दोआन के बीस साल में किए काम से खुश है और अभी भी उनके नेतृत्व में भरोसा करती है या सत्ता में बदलाव चाहती है। गौर करने की बात ये है कि तुर्की इस साल अक्तूबर में गणतंत्र की शताब्दी मनाएगा। देश भर में बड़े पैमाने पर जश्न मनाने की तैयारियाँ चल रही हैं।

29 अक्टूबर, 1923 तुर्की गणराज्य की स्थापना मुस्तफा कमाल अतातुर्क को पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था, जिन्हें आधुनिक तुर्की का संस्थापक माना जाता है। दूसरी तरफ खुद राष्ट्रपति अर्दोआन 2003 में सत्ता में आने के बाद से ही तुर्की को एक रूढ़िवादी और इस्लामिक सोच वाला देश बनाने की कोशिश में लगे हैं। सत्ता में आते ही अर्दोआन ने अतातुर्क की विरासत को मिटाने की कोशिश शुरू कर दी थी।

इस लिहाज से इन चुनावों पर दुनिया भर की नजर है। जानकारों के अनुसार, अपने 20 वर्षों के शासन में, अर्दोआन ने अलग-अलग तरीक़ों से ऑटोमन दौर को दोबारा जीवित करने की कोशिश की है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण ऐतिहासिक संग्रहालय हाया सोफिया को दोबारा मस्जिद में बदलने का है।


तुर्की में महंगाई 43.68%, अर्थव्यवस्था तय करेंगे चुनाव

तुर्की के ये आम चुनाव तुर्की की अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम हैं। इस समय तुर्की में महंगाई दर 43.68% है। लेकिन अर्दोआन का ध्यान इसको कम करने पर ज्यादा नहीं है। उनका ध्यान तो सब्सिडी और निम्न ब्याज दरों पर है। जिसके कारण तुर्की में आर्थिक ग्रोथ गिरी है और बेरोजगारी बढ़ी है। जबिक कमाल कलचदारलू का जोर महंगाई कम करते हुए निवेश बढ़ाने पर है।

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