मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था। जिसके बाद कई राजनीतिक दलों और स्थानीय लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। जिनकी ओर से राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर जहूर अहमद भट कोर्ट में पेश हुए थे। कुछ वक्त पहले उनको नौकरी से निलंबित कर दिया गया। जिसका मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।

इस निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने अहमद भट के निलंबन की जांच करने के आदेश दिए हैं। मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल अपने ऑफिस का इस्तेमाल करके इस मामले को देखें, जो कोई भी अदालत में पेश होता है, उसे निलंबित कर दिया जाता है।

खंडपीठ ने आगे कहा कि इस बारे में उपराज्यपाल से भी बात की जाए। अगर कोई अन्य कारण है, तो ठीक है, लेकिन अगर सिर्फ अदालत में याचिका डालने या पेश होने की वजह से निलंबन हुआ है, तो ये गलत है।

वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि इस निलंबन में अन्य कारण भी हैं। अखबार में इस मामले में जो छपा है, वो पूरा सच नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से इस मामले को देखा जाएगा।

वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने कहा कि ये हमारे लोकतंत्र के काम करने का तरीका नहीं है, जो भी इस अदालत में पेश होता है या लिखित में दलील देता है, उसे अगले दिन सस्पेंड कर दिया जाता है। अगर अहमद के खिलाफ अन्य मुद्दे लंबित थे, तो पहले ही उनको सस्पेंड कर दिया जाता। अनुच्छेद 370 मामले में उनके पेश होने तक इंतजार क्यों किया गया?

प्रशासन ने प्रोफेसर को सस्पेंड कर उनके आचरण की जांच करने के भी आदेश दिए हैं। जिस पर जांच अधिकारी की नियुक्त भी हो गई है। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये पता लगाया जाएगा कि उनका निलंबन सही है या गलत।

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