सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अगर जातीय हिंसा के बीच वकील मणिपुर हाई कोर्ट में पेश होने में असमर्थ हैं तो यह एक गंभीर मामला है, और दो व्यक्तियों की सुरक्षा के आदेश दिए। जिन्होंने दावा किया था कि वे अलग-अलग आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा पाने के लिए वकील नियुक्त करने में असमर्थ थे। उनके खिलाफ राज्य में मामला दर्ज कराया गया है।
अगले सप्ताह तक राज्य सरकार से जवाब मांगते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता जो कह रहे हैं, उसमें कोई दम है, अगर वकील पेश नहीं हो पा रहे हैं तो यह एक गंभीर मामला है।
दरअसल, कोर्ट सेवानिवृत्त सेना कर्नल विजयकांत चेनजी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने जनवरी 2022 में “द एंग्लो-कुकी वॉर 1917-1919” पर एक पुस्तक प्रकाशित की थी और पिछले महीने सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप लगाते हुए दायर एक पुलिस मामले में उन्हें गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा था। दूसरी याचिका इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे प्रोफेसर हेनमिनलुन की थी।
दोनों याचिकाओं में उपस्थित वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने अदालत को बताया कि जिस वकील को मणिपुर हाई कोर्ट के समक्ष एक मामले में पेश होना था, उसने उन्हें फोन किया और कोर्ट के सामने पेश होने में असमर्थता व्यक्त की। जिस दिन उन्होंने केस से अपना नाम वापस ले लिया, उसी दिन उनके घरों में तोड़फोड़ की गई। वकील ग्रोवर ने कहा कि एक वकील सुरक्षा के लिए भाग गया और अर्धसैनिक शिविर में शरण ली।
वहीं, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ग्रोवर को सुनवाई की अगली तारीख 22 सितंबर तक इन तथ्यों की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी। साथ ही कहा कि पहले हमारी अंतरात्मा को संतुष्ट करना होगा और लोगों को कोर्ट में प्रतिनिधित्व करना होगा। एक बार जब हमें राज्य से प्रतिक्रिया मिल जाएगी, तो हम मणिपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार-जनरल को निर्देश भेज देंगे।