सहारनपुर(मनीष अग्रवाल)। जनपद की पुरानी व मशहूर एव यूनिफॉर्म व कलचर के लिए जाने जाने वाले स्कूल आशा मॉडर्न स्कूल की संस्थापक आशा जी के जन्म से ही दोनों पैरों की दिव्यांगता थी। उसके बावजूद भी इन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी, बल्कि दृढ़ संकल्प के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सहारनपुर में नई इबारत लिखी। वह दिव्यांगजनों के साथ ही महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणा हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक सोच के साथ जीने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। आपको बता दे आशा जैन मूलरूप से शहर के दीनानाथ बाजार की रहने वाली हैं। चार भाई-बहनों में वह तीसरे नंबर की हैं। उनके बड़े भाई एके जैन डीजीपी रह चके हैं। दूसरे बड़े भाई एस.के. जैन इंजीनियर, जबकि छोटे भाई डॉ. ए.के. जैन शहर के चिकित्सक हैं। आशा जी को जन्म से ही दोनों पैरों में पोलियो है, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक मन लगाकर पढ़ाई की। जिस समय जनपद में पब्लिक स्कूल नहीं थे उस समय 1966 में उन्होंने आशा मॉडर्न स्कूल की नींव रखी। इसका मकसद बिजनेस करना नहीं, बल्कि समाज को बेहतर शिक्षा व्यवस्था देना था। 45 बच्चों से शुरू हुई संस्था की अब छह से जयादा ब्रांच चल रही है। खास बात यह है कि जिस समय चंद्रनगर में स्कूल की शुरुआत की।
उस समय यहां जंगल हुआ करते थे और आशा जैन दिव्यांग होने के बावजूद प्रतिदिन रिक्शा में बैठकर स्कूल आया करती थी। 1966 यानी 58 साल से लगातार यह सिलसिला जारी है। आज स्कूल की जनपद में कई ब्रांच है वह स्कूल नेअपना नाम कमाया है।

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