अमेरिका के अलाबामा राज्य की 53 वर्षीय टुवाना लूनी सूअर की किडनी के साथ स्वस्थ जीवन जी रही हैं और वह इस प्रकार की ट्रांसप्लांट से सबसे लंबे समय तक जीने वाली व्यक्ति बन चुकी हैं। नवंबर 2024 में किए गए ट्रांसप्लांट के बाद से लूनी 61 दिनों से अधिक समय तक इस किडनी के साथ जीवित हैं और उनकी सेहत पूरी तरह से ठीक है।

टुवाना लूनी की ज़िन्दगी आसान नहीं रही है। 1999 में उन्होंने अपनी माँ को अपनी एक किडनी दान दी थी, लेकिन इसके बाद उनकी दूसरी किडनी प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर के कारण खराब हो गई। 2016 तक उनकी किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर चुकी थी। आठ साल तक डायलिसिस पर गुज़ारने के बाद, उनका शरीर किसी भी इंसानी किडनी को स्वीकार नहीं कर पाया। इस स्थिति में, उन्होंने सूअर की किडनी ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया।

टुवाना की किडनी, वर्जीनिया स्थित बायोटेक कंपनी “रेविविकोर” द्वारा तैयार की गई थी। इस किडनी में 10 जेनेटिक बदलाव किए गए ताकि यह मानव शरीर में सही तरीके से काम कर सके। 25 नवंबर 2024 को न्यूयॉर्क के एनवाईयू लैंगोन अस्पताल में डॉक्टर रॉबर्ट मोंटगोमरी की टीम ने सात घंटे का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के बाद 11 दिन में लूनी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह न्यूयॉर्क में रहती हैं, जहां उनकी नियमित जांच होती है। डॉक्टरों का कहना है कि किडनी पूरी तरह से ठीक से काम कर रही है।

इससे पहले, दो मरीजों को सूअर की किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी, लेकिन वे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सके। रिक स्लेमन का ट्रांसप्लांट के दो महीने बाद निधन हो गया था, वहीं लीसा पिसानो ट्रांसप्लांट के 47 दिन बाद चल बसीं। इन असफल मामलों से डॉक्टरों को महत्वपूर्ण अनुभव हुआ, जिससे इस बार टुवाना की किडनी को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया जा सका। आजकल, टुवाना लूनी अपने जीवन को लेकर काफी उत्साहित हैं और खुद को सुपरवुमन मानती हैं।

वह न्यूयॉर्क की सड़कों पर तेज़ी से चलती हैं, जो उनकी सेहत के अच्छे संकेत हैं। सूअर की किडनी का यह ट्रांसप्लांट अन्य डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी उम्मीद बन गया है, क्योंकि अमेरिका में लाखों लोग अंगों के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। अमेरिका में आज भी एक लाख से अधिक लोग अंग ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं, जिनमें से 90 हजार से ज्यादा को किडनी की आवश्यकता है। हर साल सैकड़ों लोग ट्रांसप्लांट के इंतजार में अपनी जान खो देते हैं। डॉक्टर अब सूअरों को जीन संशोधन के माध्यम से मानव अंगों के अनुरूप बनाने का काम कर रहे हैं, जिसे “जीनो ट्रांसप्लांटेशन” कहा जाता है।

 

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