क्या शादी के लिए मर्द और औरत का होना जरूरी है? सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान यह सवाल चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा। उन्होंने कहा कि हम समलैंगिक विवाह को केवल शारीरिक संबंधों तक सीमित करके नहीं देख रहे, बल्कि एक स्थिर और भावनात्मक संबंध के रूप में देख रहे हैं। चीफ जस्टिस ने यह टिप्पणी समलैंगिक विवाह को लेकर चल रही सुनवाई के तीसरे दिन की। इस सुनवाई का लाइव प्रसारण यू-ट्यूब और कोर्ट की वेबसाइट पर किया जा रहा है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए हमें शादी की अवधारण को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। उन्होंने पूछा कि क्या शादी के लिए औरत और मर्द का होना ही एकमात्र अनिवार्य शर्त है? उन्होंने यह भी कहा कि 1954 में स्पेशल मैरिज ऐक्ट के लागू होने के बाद से बीते 69 साल में कानून में कई तरह के बदलाव आए हैं। चीफ जस्टिस ने इस दौरान 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को लेकर दिए गए आदेश का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके हमने इसे मान्यता दी है। इस फैसले में हमने यह भी माना है कि सेम सेक्स के लोग स्थिर संबंधों में भी होंगे।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में विवाह कानून में सुधार के लिए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इसके तहत सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग उठाई गई है। सरकार ने इसका यह कहते हुए विरोध किया है कि इस पर बहस के लिए संसद सही मंच है। मोदी सरकार का यह तर्क है कि समलैंगिक विवाह, भारतीय परिवारों के अनुकूल नहीं हैं, जहां पति-पत्नी और बच्चों का कांसेप्ट रहा है। सरकार ने कहा है कि इस संबंध में पेश याचिकाएं शहरी एलीट विचारों को दिखाती हैं।

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