ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने गृह विभाग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि पीट-पीट कर हत्या किए जाने के मामलों, चरमपंथी गतिविधियों और संगठित अपराध जैसे गंभीर मामलों की जांच पुलिस अधीक्षक स्तर से नीचे का अधिकारी ना करें।

मुख्यमंत्री माझी ने यह निर्देश बुधवार रात भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) के क्रियान्वयन की समीक्षा के दौरान जारी किये।

माझी ने कहा, पुलिस अधीक्षक स्तर से नीचे के अधिकारियों को पीट-पीट कर हत्या के मामलों, चरमपंथी गतिविधियों और संगठित अपराधों के मामलों की सीधे जांच करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने न्याय वितरण प्रणाली में तेजी लाने के लिए ई-एफआईआर, ई-समन और ई-साक्ष्य जैसी डिजिटल प्रक्रियाओं की आवश्यकता पर भी जोर दिया। मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि जेल, अस्पताल, फोरेंसिक लैब, अदालतें आदि को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक-दूसरे से जोड़ा जाना चाहिए ताकि गवाह जहां भी हों, वहां से अपनी गवाही दे सकें।

मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक बयान के अनुसार, मुख्यमंत्री ने कहा कि जहां भी संभव हो जांच और न्याय वितरण की प्रक्रिया को डिजिटल माध्यम से किया जाना चाहिए।

माझी ने यह भी कहा कि अपराधों की जांच की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए आधुनिक मोबाइल फोरेंसिक वैन तैनात की जानी चाहिए। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्य में जल्द ही कम से कम 32 मोबाइल फोरेंसिक वैन तैनात की जाएंगी।

बयान में कहा गया है कि राज्य में अब तक 98 प्रतिशत से अधिक पुलिस कर्मियों और अधिकारियों को नए आपराधिक कानूनों के बारे में जागरूक किया जा चुका है। एक अधिकारी ने बताया कि फोरेंसिक प्रयोगशालाओं को उन्नत किया जा रहा है और फोरेंसिक तथा साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञों के लिए 247 अतिरिक्त पद सृजित किए गए हैं।

अधिकारी ने बताया कि इसी तरह, जेल विभाग के सभी कर्मचारियों को नए कानून के तहत पूरी तरह से प्रशिक्षित किया गया है। जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।

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