अयोध्या: अयोध्या का किन्नर समाज श्री राम मंदिर के निर्माण और रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से हर्ष में है. श्री राम के जन्म के बाद किन्नर समाज ने राजा दशरथ से नेग लेकर इस परंपरा की शुरुआत की थी. गद्दीपति व अयोध्या जिले की किन्नर समाज की अध्यक्ष पिंकी मिश्रा ने बताया कि किन्नरों ने श्रीराम को गोद में लिया, ढोलक-मजीरा बजाकर बधाई गाई, बलाइयां लीं और उस नेग को स्वीकार किया, जिसे राजा दशरथ के लाख अनुरोध के बाद भी कोई नहीं स्वीकार कर रहा था.

यही नहीं जब वनवास से राम जी लौटकर आए तो किन्नरों ने उन्हें बताया कि प्रभु हमने अयोध्या से दूर रहकर आपका इंतजार करते हुए साधना-अराधना और यशोगान किया. प्रभु श्रीराम ने उनके इस समर्पण को शीश झुकाकर प्रणाम किया और आशीर्वाद दिया. प्रभु ने कहा कि जिस भी घर में दो से तीन प्राणी होंगे, मांगलिक कार्य होगा तो आप उनको बधाइयां व आशीर्वाद देंगे, बदले में नेग लेंगे. तब से यह परंपरा अभी तक तक निरंतर कायम है. पिंकी मिश्रा ने कहा कि अहो भाग्य, राम जी फिर पधार रहे हैं. अपार खुशी है राम जी अपने राजमहल में विराजमान हो रहे हैं तो हम किन्नर झोली फैलाकर यह मांग कर रहे हैं कि भले एक पैसा ही सही, हमें राम जी का नेग दिया जाए. क्योंकि हम राम जी का ही दिया खाते हैं और उन्हीं के गुण गाते हैं.

बताया जाता है कि दिग्विजयी सम्राट राजा दशरथ की जन्म-जन्मांतर से अधूरी इच्छा रामलला की किलकारियों से पूरी हुई थी. इससे न केवल अवधपुरी, बल्कि 14 भुवन समेत समूचा ब्रह्मांड भी मंगलगान से गूंज उठाा था. राजा दशरथ ने गुरु श्रेष्ठ, प्रजाजन, सेवक-सेविकाओं, नाऊ और दाई के लिए हर्षित मन से नाना रत्न अलंकार से शोभित भेंट देने का निश्चय किया. अब संकट सामने यह था रघुकुल की परंपरा है ‘प्राण जाय पर वचन न जाए’ मगर प्रभु के प्राकट्य से आह्लादित जनमानस राजा की भिक्षा नहीं, अपने इष्ट के दीदार मात्र की मंशा रखता था.

संकट ये उत्पन्न हुआ कि वचन के मुताबिक निकाली गई नेग भला कौन ले, दुविधा की इस घड़ी में समाज का सबसे वंचित किन्नर अपने प्रिय राजा के वचनों का मान रखने सामने आता है. वह नेग सहर्ष स्वीकार करता है और ‘जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो’, ‘प्रकटे हैं चारो भैया-अवध में बाजे बधइया’ जैसी भेंटे नाच-गाकर रामलला को आशीर्वाद देता है. 500 वर्षों के बाद अब प्रभु श्रीराम के त्रेतायुगीन उसी वैभव को कलियुग में एक बार फिर साकार होता देख यह समाज उल्लास से भर उठा है.

ये वही किन्नर समाज है, जिसने रामलला के जन्म पर बधाई गाकर नेग स्वीकार करने के चलन को प्रचलन में लाया. ये वही समाज है कि जब वन को निर्वासित जनप्रिय युवराज राम से मिलकर उनके आदेश पर चरण पादुका को सिर पर सुशोभित करते हुए भरत नंदीग्राम के लिए अयोध्या की सकल नर-नारी रूपी जनमानस के साथ प्रस्थान कर गए थे, लेकिन वहीं तमसा नदी के किनारे 14 वर्ष समाज से दूर रहकर किन्नर वनवास की अवधि के दौरान निरंतर राम राजा के यशोगान के निमित्त साधना आराधना में लीन रहे. ये वही समाज है, जब प्रभु श्रीराम रावण के दंभ रूपी लंका के ध्वंस के उपरांत लौटे तो श्रीराम ने उन्हें गले लगाकर उनके अप्रतिम त्याग को सिर माथे नवाया था.

किन्नर लवली ने कहा कि जन्मभूमि के लिए संघर्ष करने में गोरक्षपीठ की बड़ी भूमिका रही है. महंत दिग्विजयनाथ हों या महंत अवेद्यनाथ, जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में जब भी कुछ नया घटनाक्रम हुआ, गोरक्षनाथ महत्वपूर्ण भूमिका में रहा. यहां आकर राम मंदिर के लिए चिंता और चिंतन करने वाले योगी आदित्यनाथ को जब मौका मिला तो उन्होंने पूर्वजों की उस साधना को सिद्धि में परिवर्तित करके दिखा दिया. सीएम योगी आदित्यनाथ बार-बार कहते हैं कि मेरे एक ही राजा हैं-वो हैं राजा राम. राजा राम की नगरी के विकास को लेकर उन्होंने इस बात को साबित भी किया है.

नरगिस किन्नर ने कहा कि सप्तपुरियों में प्रथम अयोध्या धाम विकास और विरासत के संरक्षण की मानक नगरी बनेगी. श्रीराम के अनन्य भक्त योगी आदित्यनाथ ने इसका संकल्प लिया था. राम जी अपनी अयोध्या के मंदिर में आ रहे हैं तो वह संकल्प भी पूरा हो रहा है और किन्नर समाज में खुशी की लहर आ रही है. अयोध्या को देख गुरु शांति किन्नर की आंखें भी भाव-विह्वल हैं. वह कहती हैं कि हमारे सामने ही अयोध्या कितनी बदल गई, यह कोई नेता नहीं कर पाता, क्योंकि महाराज जी संत हैं. इसलिए ही वे यहां के मर्म को समझ पाए और यहां अभूतपूर्व बदलाव किया. वे भी अपने राम को महलों में आता देख शब्दों से खुशी बयां नहीं कर पा रही हैं. उनकी आंखें ही सब कुछ कही जा रही थी. उन्होंने कहा कि हमको भी ट्रस्ट के निमंत्रण का इंतजार है.

अयोध्या का किन्नर समाज रोम-रोम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दुआएं दे रहा है. उनका कहना है कि इस गौरव को लौटाने वाले दोनों नायकों पर प्रभु श्रीराम सदा सहाय हों और दसों दिशाओं में इनका यशोगान होता रहे।

 

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