आम तौर पर भगवान शिव के अतिप्रिय माने जाने वाले श्रावण महीने में सभी शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर में एक ऐसा मंदिर भी है जहां इस श्रावण महीने में एक भी भक्त नहीं होते हैं, बल्कि बागमती नदी की धारा यहां जलाभिषेक करती है। जिन भक्तों को इस महीने पूजा करनी होती है वे वहां जाकर बागमती में ही जल छोड़ देते हैं।
दरअसल, मुजफ्फरपुर जिले के कटरा प्रखंड के धनोरा गांव के पास स्थित बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर बागमती नदी के बीच में स्थित है, जहां सावन महीने में बागमती नदी के जलस्तर में वृद्धि के बाद मंदिर पानी में डूब जाता है।
वैसे, बाबा धनेश्वर नाथ का मंदिर की काफी मान्यता है। यहां आसपास के क्षेत्रों, जिलों के अलावा नेपाल से भक्त पूजा करने आते हैं।
मंदिर के पुजारी शंकर कुमार उर्फ दानी बताते हैं कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। बचपन से मंदिर की सेवा में लगे दानी ने कहा कि कहा जाता है कि इस मंदिर के शिवलिंग को एक बार नदी से बाहर किनारे स्थापित करने की कोशिश हुई थी, लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर का पता ही नहीं चला।
उन्होंने बताया कि पहले यह मंदिर छोटा था, लेकिन फिर स्थानीय लोगों की मदद से फिर बड़ा मंदिर बनाया गया।
उन्होंने बताया कि यहां भगवान शिव छह महीने जल शयन में रहते हैं और मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है। पुजारी का कहना है कि भक्तों को यहां आने के लिए नाव ही सहारा है। पानी कम होने के बाद लोग यहां चचरी पुल के सहारे भी पहुंचते हैं।
पुजारी बताते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद बाबा पूरी करते हैं।
स्थानीय अमित शर्मा ने कहा कि बागमती के नदी में आए उफान से हर साल कई घर, पुल, पुलिया और झोपड़ियां बह जाती हैं या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, लेकिन आज तक इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। हर साल इस मंदिर का आधा हिस्सा करीब दो से तीन महीने पानी में डूबा रहता है।
धनोरा गांव के रहने वाले दीपक मंडल बताते हैं कि यह मंदिर बागमती के बाहरी पेटी में स्थित है, इस कारण छह महीने यहां बागमती का पानी नहीं होता है और भक्त चचरी पुल के जरिए भी आते हैं।
नदी का जलस्तर जब कम रहता है, तो भक्त नाव से मंदिर तक चले जाते हैं। लेकिन, जलस्तर बढ़ने पर नाव से भी जाना संभव नहीं हो पाता। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि बागमती नदी खुद भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए आती है।
बाढ़ वाले दिनों में यहां पट बंद रहता है। शिवलिंग से ऊपर करीब 8 से 10 फीट ऊपर तक पानी रहता है।
स्थानीय लोगों की मानें तो कुछ श्रद्धालु नदी को नाव से पार कर मंदिर पहुंचते हैं और बाहर से ही पूजा अर्चना करते है। इस दौरान मंदिर के समीप नदी में ही गंगाजल प्रवाहित कर बाबा का जलाभिषेक करते है। मान्यता है कि मंदिर के पास नदी में जलाभिषेक करने पर नदी का पानी मंदिर में शिवलिंग की ओर चला जाता है।