भारत विकसित देश बनने की ओर बढ़ रहा है तो ग्रामीण व शहरी भारत के खर्चे का अंतर भी घट रहा है वहीं लोगों के मासिक खर्च के पैटर्न में भी बदलाव आ रहा है। पिछले 11 साल में लोगों का प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च (एमपीसीई) ढाई गुना तक बढ़ गया है और लोग खाने-पीने की चीजों के बजाय दूसरी सुख-सुविधाओं पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि शहरी लोगों की तरह ग्रामीण लोग भी दाल-रोटी-सब्जी पर कम जबकि प्रोसेस्ड फूड, बेवरेज और ड्राइ फ्रूट पर ज्यादा खर्चा कर रहे हैं। केंद्र सरकार के सांख्यिकी विभाग के हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे की ताजा रिपोर्ट में देश की यह तस्वीर उभरी है।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस ने अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच यह सर्वे कराया था। यह सर्वे हर 5 साल पर कराया जाता है, लेकिन सरकार ने 2017-18 के सर्वे का नतीजा आंकड़ों में गड़बड़ी की बात कहकर जारी नहीं किया था। अब 2011-12 के 11 साल बाद एमपीसीई रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट के अनुसार 11 साल में ग्रामीण क्षेत्रों में एमपीसीई 1430 रुपए से बढ़कर 3773 रुपए तथा शहरी क्षेत्र में 2630 रुपए से बढ़कर 6459 रुपए हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच खर्च का अंतर 2011-12 में करीब 84 फीसदी था जो अब घट कर करीब 72 फीसदी रह गया है। शहरी व ग्रामीण आबादी के खर्च के पैटर्न में अंतर कम होने से माना जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र को विकास का फायदा मिल रहा है।
ताजा सर्वे में कुल खर्च में फूड आइटम्स की हिस्सेदारी घटने और दूसरी चीजों की बढ़ने का मतलब यह है कि इसके आधार पर कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआइ) की नई सीरीज तैयार करने में मदद मिलेगी। मौजूदा इंडेक्स में खाने-पीने की चीजों का वेटेज अन्य सुख-सुविधाओं पर खर्च से ज्यादा है। खर्च का पैटर्न बदलने के आधार पर नई सीरीज सच्चाई के ज्यादा नजदीक होगी। सीपीआइ इंडेक्स से ही महंगाई की िस्थति का पता चलता है।
प्रति व्यक्ति मासिक खर्च के हिसाब से गांवों में जो सबसे निचले स्तर पर पांच फीसदी लोग हैं वे 1373 रुपये महीने में गुजारा कर रहे हैं जबकि शहरों में यह खर्च 2001 रुपए है। सबसे ऊपर के पायदान के पांच फीसदी लोगोंं का गांवों में औसत खर्च 10501 रुपए जबकि शहरी क्षेत्र में 20824 रुपए है।
देश में ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों की एमपीसीई में सिक्किम टॉप पर है जबकि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण व शहरी आबादी का खर्च सबसे कम है।
रिपोर्ट से लोगों के खर्च करने के पैटर्न से कुछ चिंताजनक बातें भी सामने आई हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में तंबाकू व नशे पर खर्च बढ़ा है जबकि शिक्षा पर खर्च में कमी आई है। लोगों ने सब्जी पर खर्च भी कम कर दिया है। शहरों में इलाज का खर्च घटा है लेकिन इनडोर इलाज का खर्च बढ़ा है।