सुप्रीम कोर्ट आज सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली पांच याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इस अहम सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ करेगी। याचिकाओं में एआईएमआईएम प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है, जिसमें इस कानून को संविधान विरोधी बताया गया है।
विवादित अधिनियम पर पहले ही रोक के संकेत दे चुका है न्यायालय
पिछली सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह अगली सुनवाई तक वक्फ ‘बाय यूजर’ और अधिसूचित संपत्तियों के साथ कोई छेड़छाड़ न करे। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में नई नियुक्तियों पर भी फिलहाल रोक रहेगी।
लोकसभा और राज्यसभा में हुआ था अधिनियम का तीखा विरोध
वक्फ (संशोधन) अधिनियम को संसद में पारित किया गया था, लेकिन इसे लेकर दोनों सदनों में भारी मतभेद देखने को मिला। लोकसभा में 288 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया जबकि 232 ने इसका विरोध किया। राज्यसभा में भी समर्थन और विरोध में नज़दीकी मुकाबला रहा। इसके बावजूद पांच अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह अधिनियम अधिसूचित कर दिया गया।
राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने जताई आपत्ति
अधिनियम के लागू होते ही विभिन्न मुस्लिम संगठनों और कई राजनीतिक दलों ने इसकी वैधता पर सवाल उठाए और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, और इसके तहत बिना ठोस आधार के संपत्तियों को वक्फ घोषित करने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है।
सरकार की सफाई: विचार-विमर्श के बाद हुआ पारित
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि यह कानून संसद में उचित प्रक्रिया और बहस के बाद पारित हुआ है। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार का पक्ष सुने बिना कानून पर रोक लगाना न्यायोचित नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार सभी पक्षों की भावनाओं और न्यायपालिका की चिंताओं को गंभीरता से ले रही है।
क्या है ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान?
‘वक्फ बाय यूजर’ वह प्रक्रिया है जिसके तहत लंबे समय से धार्मिक या सार्वजनिक कार्यों के लिए उपयोग में ली गई संपत्तियों को वक्फ संपत्ति माना जाता है, भले ही उसका विधिक स्वामित्व किसी अन्य के पास हो। यही प्रावधान इस अधिनियम में सबसे अधिक विवाद का कारण बना हुआ है।
अब आगे क्या?
आज की सुनवाई में अदालत यह तय कर सकती है कि क्या इस अधिनियम को अंतरिम रूप से स्थगित किया जाए या इसकी वैधता की जांच के लिए संविधान पीठ गठित की जाए। अदालत का निर्णय न केवल इस कानून की किस्मत तय करेगा, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।
