पिछले कुछ दिन रूस के लिए काफी उथल-पुथल से भरे रहे। यूक्रेन के खिलाफ 16 महीने से भी ज़्यादा समय से चल रहे युद्ध की वजह से जहाँ पहले ही रूस को अब तक काफी नुकसान हो चुका है, वहीं हाल ही में वैगनर ग्रुप की बगावत ने रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की टेंशन भी बढ़ा दी। और वो भी इस हद तक, कि उनके मॉस्को छोड़ने तक की बातें उड़ गई। हालांकि पुतिन ने मॉस्को छोड़ा या नहीं, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। पर यह बात तो साफ है, कि एक किराये की आर्मी ने दुनिया के सबसे ताकतवर और निडर लीडर्स में से एक पुतिन की नींद ज़रूर उड़ा दी। 70 साल की अपनी ज़िंदगी में निश्चित रूप से पुतिन के सामने कई मुश्किल परिस्थितियाँ आई हैं। पर वैगनर ग्रुप, जो एक किराये की आर्मी है और पुतिन के समर्थन से ही फली-फूली है, के बगावती सुर ने पुतिन को हैरान करने के साथ ही चिंता में भी डाल दिया।
बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको की मदद से वैगनर ग्रुप की बगावत तो खत्म हो गई है। वैगनर ग्रुप के लड़ाकों ने रूस को कुछ खास नुकसान भी नहीं पहुंचाया। वैगनर ग्रुप के लीडर येवगेनी प्रिगोझिन ने अपनी आर्मी को रूस से पीछे हटने का आदेश दे दिया है और उन्होंने भी मैदान छोड़ दिया है। पर जो प्रिगोझिन लंबे समय तक पुतिन का खास रहा, जिसकी किराये की आर्मी ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस की तरफ से अहम भूमिका निभाई, जब उसी ने रुसी प्रशासन और नीतियों से परेशान होकर बगावत छेड़ दी, तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक माने जाने वाले रूस के लिए मुश्किल खड़ी हो गई।
इसके क्या मायने हैं? ये हमें और आपको भी समाज में आ गए हैं। रूस का रुतबा कम होता जा रहा है और यह बात पुतिन के भी समझ में आ गई है।
जो पुतिन कुछ दिन में ही यूक्रेन पर कब्ज़ा कर लेना चाहते थे, वह 16 महीने में भी ऐसा नहीं कर पाए हैं। बेशक रूस की आर्मी ने यूक्रेन में तबाही मचा दी है। बड़ी संख्या में लोगों की जान गई और उससे भी ज़्यादा लोग घायल हुए। यूक्रेन में आतंक के इस मंजर से बड़ी संख्या में लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो न जाने कितने लोग यूक्रेन में रहते हुए ही युद्ध की वजह से बेघर हो गए। पर क्या पुतिन को उनके मंसूबों में कामयाबी मिली? जवाब सीधा सा है….नहीं।
जो वैगनर ग्रुप पुतिन के समर्थन से फला-फूला, उसने जब बगावत के सुर छेड़े, तो पुतिन की भी टेंशन बढ़ गई। एक किराये की आर्मी ने पुतिन को परेशान कर दिया। पुतिन का खास अब पुतिन से दूर हो गया है। पर कभी पुतिन के खास रहे प्रिगोझिन ने जब तेवर दिखाए, तो पुतिन की एक न चली।
ऐसे में मन में सवाल आता है, “क्या पुतिन का घमंड टूट गया है?” जवाब एक बार फिर सीधा सा है और कुछ ऐसा जो पुतिन को शायद ही पसंद आए, पर इससे सच नहीं बदलेगा।
सैन्य शक्ति और हथियारों के मामले में रूस की गिनती दुनिया के टॉप 3 सबसे शक्तिशाली देशों में से होती है। पर शक्तिशाली आर्मी और एडवांस हथियाओं की भरमार होते हुए भी रूस अब तक यूक्रेन को जीत नहीं पाया है। वहीं अब वैगनर ग्रुप ने भी पुतिन से किनारा कर लिया है। वहीं वैगनर ग्रुप, जिसके लड़ाकों में यूक्रेन के कई शहरों पर कब्ज़ा करने में अहम भूमिका निभाई। जिन्होंने यूक्रेन में तबाही मचाने के लिए जी-जान ला दी। धीरे-धीरे रूस के सभी प्लान्स फेल होते दिखाई दे रहे हैं।
ऐसे में एक बड़ा सवाल सामने आता है। क्या यूक्रेन पर कब्ज़ा करने के लिए किया गया हमला पुतिन की गलती थी? क्या रूस की ताकत कमज़ोर पड़ रही है? जवाब एक बार फिर बड़ा सीधा है और हम और आप भी इससे वाकिफ हैं। अब सोचने की बारी पुतिन की है। न सिर्फ सोचने की, बल्कि गहन चिंतन की….इस पूरी स्थिति की। पुतिन सच से भागने की कोशिश कर सकते हैं, पर इससे रूस की ताकत और कमज़ोर होगी।