10 साल के कंटेंट क्रिएटर अभिनव अरोड़ा का एक वीडियो हाल ही में सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। इस वीडियो में, जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य मंच पर अभिनव को डांटते हुए नजर आ रहे हैं। स्वामी जी ने मंच पर उन्हें निर्देश दिया कि वे नीचे जाएं और इस आदेश को दो बार दोहराया। यह दृश्य उस समय का था जब अभिनव मंच पर उपस्थित थे और स्वामी रामभद्राचार्य उनके व्यवहार से असंतुष्ट थे। स्वामी रामभद्राचार्य ने अभिनव को लेकर टिप्पणी की, “इतना मूर्ख लड़का है वो। वो कहता है कि कृष्णा उसके साथ पढ़ते हैं… भगवान क्या उसके साथ पढ़ेंगे? मैंने तो वृंदावन में भी उसे डांटा था।” यह टिप्पणी और डांट ने कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे अभिनव की आलोचना होने लगी।

इस पूरे मामले पर अभिनव अरोड़ा ने स्पष्ट किया कि यह वीडियो हाल का नहीं है। उन्होंने बताया कि यह वीडियो लगभग एक साल या डेढ़ साल पुराना है और यह वृंदावन में फिल्माया गया था, न कि प्रतापगंज में जैसा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया। अभिनव ने अपने फॉलोअर्स से सवाल किया कि क्या कभी उनके माता-पिता या गुरु ने उन्हें नहीं डांटा। उन्होंने कहा, “जब इतने बड़े गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने मुझे डांटा, तो इसे देश का सबसे बड़ा मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है?” उन्होंने यह भी कहा कि उसके बाद जगदगुरु रामानंदाचार्य ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाकर आशीर्वाद भी दिया था, जो कि एक सकारात्मक संकेत है।

अभिनव ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि हाल के दिनों में ट्रोलिंग ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि वे स्कूल जाते हैं, लेकिन लगातार बढ़ती ट्रोलिंग के कारण अब वे स्कूल नहीं जा पा रहे। इस स्थिति ने उनकी बहन को भी प्रभावित किया है, जिससे वह भी स्कूल नहीं जा पा रही हैं। अभिनव ने कहा, “ट्रोलिंग इतनी बढ़ गई है कि मैं स्कूल नहीं जा पा रहा। मेरी बहन भी मेरी वजह से स्कूल नहीं जा रही है।”

इस पूरे मामले के बीच, अभिनव अरोड़ा के बाल संत होने के दावों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि एक बच्चे को धार्मिक सभाओं में शामिल कर उनका शोषण किया जा रहा है। इस पर भी उन्हें ट्रोल किया जा रहा है, और लोग पूछ रहे हैं कि वे स्कूल क्यों नहीं जाते। अभिनव ने इस संदर्भ में कहा कि यह सामान्य है कि बच्चे धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं, और उन्हें यह अनुभव देने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन और शिक्षा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
इस विवाद ने न केवल अभिनव की व्यक्तिगत स्थिति को उजागर किया है, बल्कि समाज में बच्चों की भूमिका और उनके अधिकारों पर भी सवाल उठाए हैं। क्या बच्चों को धार्मिक आयोजनों में शामिल किया जाना सही है? क्या उनकी शिक्षा पर इस तरह की गतिविधियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है?

 

 

 

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