जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी शुभम द्विवेदी ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। बीते मंगलवार देर रात उनका पार्थिव शरीर जब लखनऊ पहुंचा, तो पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव रवाना किया गया। जैसे ही शव गांव पहुंचा, हर आंख नम थी, हर दिल दुःख से भरा हुआ।

एक पिता का आक्रोश, एक परिवार का दुःख
मिली जानकारी के मुताबिक, शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने बेटे के शव से लिपटकर जो शब्द कहे, वो पूरे देश के दिल में उतर गए। उन्होंने कहा कि ये दो टके के आतंकवादी सरकार को खुली चुनौती देकर गए हैं। इन्हें ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए कि सात पुश्तें याद रखें।”शुभम की पत्नी एशान्या ने कांपती आवाज में बताया कि, ‘हम बैठकर बातें कर रहे थे, तभी कुछ लोग बंदूक लेकर आए और शुभम से पूछा कि वो हिंदू हैं या मुसलमान। जैसे ही शुभम ने जवाब दिया- ‘हिंदू हूं’, तो उन्होंने गोली चला दी। पहली गोली मेरे पति को लगी।’

सरकार और समाज परिवार के साथ खड़े
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कैबिनेट मंत्री राकेश सचान और मंत्री योगेश शुक्ला ने खुद एंबुलेंस में शव को कंधा देकर गांव तक पहुंचाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने शोकाकुल परिवार से मुलाकात कर भरोसा दिलाया कि शुभम की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। बृजेश पाठक ने कहा कि शुभम सिर्फ आपका बेटा नहीं, पूरे भारत का बेटा था। आतंकवादियों को ऐसी मौत मिलेगी कि उनकी रूह कांप जाएगी।

एक सवाल- क्या अब भी चुप रहेंगे?
शुभम के पिता संजय द्विवेदी का सवाल सरकार से ही नहीं, पूरे देश से है कि अगर मेरे बेटे की जगह कल किसी और का बेटा होता, तो क्या हम यूं ही देखते रहते? उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर यही मांग रखी कि अब आतंकियों को ऐसा जवाब मिले जो दुनिया याद रखे।

अब बारी भारत की है
शुभम की शहादत ने फिर से देश को झकझोर दिया है। यह केवल एक जवान की मौत नहीं, बल्कि उन तमाम परिवारों की पीड़ा है, जो हर दिन सीमाओं पर अपने लालों को खोते हैं। अब समय है एकजुट होने का, आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का, और यह दिखाने का कि भारत सिर्फ सहने वाला देश नहीं-जवाब देने वाला राष्ट्र है।

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