राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की सामूहिक प्रकृति पर जोर देते हुए कहा कि देश की आजादी 1857 के विद्रोह से शुरू हुए व्यापक प्रयासों का परिणाम थी, न कि किसी एक व्यक्ति की उपलब्धि थी। नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि हमेशा इस बात पर बहस होती है कि देश को आजादी किसके प्रयासों से मिली। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह आजादी किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं मिली। इसके लिए प्रयास 1857 में शुरू हुए और हर जगह आग भड़क उठी; उसके बाद, यह आग कभी शांत नहीं हुई। प्रयास जारी रहे और सभी के सामूहिक प्रयासों से हमें आजादी मिली।
सामूहिक विचार और निर्माण के महत्व को समझाते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की दिशा सामूहिक विचार से तय होती है, संघ का काम एक या दो लोगों का काम नहीं है, संघ जो भी करता है और जो भी कहता है, वह सामूहिक निर्णय होता है। इससे पहले 5 जून को आरएसएस प्रमुख ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी और भारतीय सेना की त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया की सराहना की थी। साथ ही उन्होंने सभी राजनीतिक ताकतों से इस घटना के बाद उभरी एकता की भावना को बनाए रखने का आग्रह किया था।
उन्होंने कहा, “पहलगाम में एक बर्बर हमला हुआ। आतंकवादी हमारे देश में घुस आए और हमारे नागरिकों को मार डाला। हर कोई दुखी और क्रोधित था और अपराधियों के लिए सजा चाहता था। वास्तव में कार्रवाई की गई…इस संबंध में, हमारी सेना की क्षमता और बहादुरी एक बार फिर चमक उठी। रक्षा में अनुसंधान की प्रभावशीलता साबित हुई…हम सभी ने सरकार और प्रशासन की दृढ़ता देखी।” उन्होंने कहा कि हम सभी राजनीतिक दलों की आपसी समझ और आपसी सहयोग को भी देख रहे हैं, जो सभी मतभेदों को भुला रहे हैं…अगर यह स्थायी हो जाए और मुद्दों के पुराने होने के साथ-साथ फीका न पड़े, तो यह देश के लिए बहुत बड़ी राहत होगी। जैसे हमने देशभक्ति के इस माहौल में सभी मतभेदों और प्रतिद्वंद्विता को भुला दिया, वैसे ही आदर्श लोकतंत्र का यह नजारा आगे भी जारी रहना चाहिए। हम सभी यही चाहते हैं।