उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार ने बुधवार को राज्य में बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों में भीड़ प्रबंधन और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है।

एसओपी इसलिए जारी किया गया है ताकि हाथरस में हुई भगदड़ जैसी घटना दोबारा न हो।

एसओपी के अनुसार, खतरे का आकलन करने के बाद ही आयोजन की इजाजत दी जाएगी। वरिष्ठ अधिकारियों को खुद मौके पर पहुंचकर कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण करना होगा। श्रेणीबद्ध सुरक्षा प्राप्त तथा विशिष्ट अतिथियों (मेहमानों) के आने-जाने का मार्ग आम जनता के मार्ग से अलग रखा जाएगा। राजपत्रित अधिकारी व स्थानीय मजिस्ट्रेट को प्रभारी नियुक्त किया जाएगा।

दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच, मॉल, रेलवे स्टेशन, राजनीतिक और आध्यात्मिक आयोजनों में भी बड़ी भीड़ उमड़ती है। इसलिए इन समारोहों में भगदड़ की भी आशंका रहती है। इसलिए भीड़ से संबंधित किसी भी आपात स्थिति और आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त और एडवांस तैयारी की जरूरत होती है।

डीजीपी ने कहा, ”प्रभावी भीड़ प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की सिफारिशों के अनुरूप, हमने बड़े पैमाने के आयोजनों के दौरान आपदाओं और आपात स्थितियों को रोकने के लिए मुख्यालय स्तर पर एसओपी तैयार किया गया है।”

एसओपी के मुताबिक, भीड़ जनित आपदा के दृष्टिगत कमिश्नरेट, जिला, रेंज, जोन स्तर पर इंटीग्रेटेड सिस्टम विकसित की जाएगी। डीएम, सीएमओ, सिविल डिफेंस, अग्निशमन, विभिन्न स्वयंसेवी संगठन तथा स्थानीय पुलिस की ओर से इसे लगातार अपडेट किया जाता रहेगा। आपदा प्रबंधन से संबंधित सभी विभाग नियमित पूर्वाभ्यास करेंगे।

इसके अलावा, पुलिस लाइन में आयोजित होने वाले बड़े कार्यक्रमों के दौरान सुरक्षा और यातायात प्रबंधन के लिए विशेष इंतजाम किए जाएंगे। सभी अस्पतालों को भी तैयार रखा जाएगा ताकि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत इलाज दिया जा सके।

डीजीपी प्रशांत कुमार ने आदेश दिया है कि इंटिग्रेटेड सिस्टम को स्थानीय परिस्थितियों के मद्देनजर प्रति वर्ष अपडेट और अपग्रेड किया जाए। पुलिस लाइनों में विशेष आयोजनों में सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण और ट्रैफिक संचालन के संसाधनों और उपकरणों की रोजाना जांच कराई जाए और कर्मियों को इसके लिए ट्रेनिंग दी जाए।

इसके अलावा यह भी आदेश दिया कि जिला, रेंज और जोन स्तर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को चिन्हित किया जाए। वरिष्ठ अधिकारियों, स्थानीय मैजिस्ट्रेट और जिम्मेदार अधिकारियों के साथ कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण किया जाए।

वहीं डीजीपी ने बताया कि परमिशन देने वाले अधिकारी और स्थानीय पुलिस पहले से चेक कर लें कि कार्यक्रम स्थल पर कोई खतरा नहीं है। वहां लोगों का आवागमन सुरक्षित है। संभावित खतरों जैसे कि आग, बिजली, सड़क दुर्घटना और श्वास अवरोधक के आकलन के आधार पर आपातकालीन योजना तैयार की जाए। सभी विभागों से समन्वय बनाया जाए। कार्यक्रम की पूरी जानकारी और वहां आने वालों की अनुमानित संख्या की जानकारी जुटाई जाए। सुरक्षा और ट्रैफिक के लिए जरूरी पुलिस, पीएसी, केंद्रीय बल, अधिकारियों और संसाधनों का मांग पत्र तैयार किया जाए। मजबूत बैरिकेडिंग की जाए।

उन्होंने आगे बताया कि कार्यक्रम स्थलों पर सीसीटीवी के जरिए मॉनिटरिंग की जाए। ऑपरेशनल कंट्रोल रूम बनाए जाएं। कार्यक्रम के प्रबंधन के लिए राजपत्रित अधिकारी (स्थानीय मजिस्ट्रेट) को प्रभारी नियुक्ति किया जाए। ड्यूटी पर लगाए जाने वाले फोर्स की समुचित ब्रीफिंग की जाए। पब्लिक एड्रेस सिस्टम के साथ अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था की जाए। अफवाह फैलाने वाले असामाजिक तत्वों पर नजर रखी जाए। कार्यक्रम स्थल पर लाइट, पीने का पानी और एंबुलेंस का इंतजाम किया जाए। भीड़ को कंट्रोल प्लान के तहत आने-जाने और पार्किंग का इंतजाम किया जाए। मेहमानों (अतिथियों) के आने-जाने वाले रास्ते को अलग-अलग रखा जाए। जनता के लिए आने-जाने के रास्ते अलग हों।

भगदड़ की स्थिति पर इलाज के लिए चिकित्सा विभाग से समन्वय बनाकर एंबुलेंस का इंतजाम किया जाए। उनके लिए ग्रीन कॉरिडोर तैयार कराया जाए। मृतकों को घटना स्थल और अस्पताल से उनके घर पहुंचाने और अंतिम संस्कार के लिए स्थानीय प्रशासन से समन्वय बनाकर कार्रवाई की जाए। जरूरत का आकलन करते हुए स्थानीय फील्ड यूनिट, फायर बिग्रेड, बीडीएस टीम, फ्लड यूनिट और एसडीआरएफ की भी मदद ली जाए। मीडिया को समुचित ब्रीफिंग की जाए, जिससे कोई गलत तथ्य या अफवाह न फैलने पाए।

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