महाराष्ट्र सरकार ने जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण को देर से जारी करने की छूट पर फिलहाल रोक लगा दी है. यह कदम बीजेपी नेता की शिकायतों के बाद उठाया गया है. उन्होंने जन्म प्रमाण पत्र जारी होने में धांधली की शिकायत की थी. वहीं, अब एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार ने 21 जनवरी से जन्म प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगा दी है. उससे उन परिवारों को दिक्कत आ रही है जिनके घर में बच्चों का जन्म कोविड के वक्त हुआ था.
दरअसल, सरकार ने जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 में संशोधन किया था जिसमें जिला मजिस्ट्रेट या उपमंडल अधिकारी को देर से (विलंबित) जन्म और मृत्यु पंजीकरण की शक्तियां दी गई थीं. लेकिन बीजेपी सांसद किरीट सोमैया ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र के कुछ जिले में जन्म प्रमाणपत्र को जारी करने से संबंधित स्कैम हुआ है.
क्या है महाराष्ट्र सरकार का नियम?
किसी के जन्म के एक साल बाद जो प्रमाणपत्र जारी किए जाते हैं उसे विलंबित आवेदन कहा जाता है. किरीय सोमैया ने आरोप लगाया था कि जनवरी 2021 से दिसंबर 2023 के बीच अकोला शहर की अदालत ने 269 विलंबित जन्म प्रमाणपत्र जारी किए गए थे लेकिन तहसीलदार ने 4,849 विलंबित जन्म आवेदन को पंजीकृत करने के आदेश दिए थे. उन्होंने दावा किया कि इसी तरह यवतमाल में 11,864 और नागपुर में 4,350 विलंबित आवेदन पंजीकृत किए गए.
ओवैसी ने उठाया मालेगांव का मुद्दा
उधर, एआईएमआईएम चीफ और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ‘एक्स’ पर लिखा, ”महाराष्ट्र सरकार ने 21 जनवरी के जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र को जारी करने पर रोक लगा दी है. इसकी वजह से कोविड के वक्त में या उसके बाद पैदा हुए हजारों बच्चों को दिक्कत आ रही है. गरीब परिवार के लोग विशेषकर कानूनी जानकारी ना होने, वित्तीय संकट और अज्ञानता के कारण मालेगांव के लोग रजिस्टर नहीं कर पाए. उनके बच्चों के स्कूल में एडमिशन नहीं हो पा रहे हैं. सीएम देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे से अपील करता हूं कि इस पर बैन हटाया जाए. प्राइमरी स्कूल में प्रवेश के लिए छूट दी जाए. शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है, मालेगांव के गरीब बच्चों को अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता.”