दो बार ‘दूध की जली’ कांग्रेस लगता है इस बार ‘छाछ भी फूंक-फूंककर’ पीना चाहती है। पिछले एक सप्ताह से पार्टी जिस तरह सक्रिय नजर आ रही है, उससे लगता है वह पुरानी गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। विधानसभा चुनाव से ठीक सात महीने पहले विधायकों से फीडबैक लेना इस दिशा में महत्वपूर्ण कड़ी है।
फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की बात न सिर्फ सार्वजानिक रूप से स्वीकारी बल्कि टिकट काटने के संकेत भी दे डाले। तीन दिन जयपुर में विधायकों के साथ वन-टू-वन मुलाकात से निकले राजनीतिक निचोड़ को मुख्यमंत्री ने समझने का प्रयास भी किया और उसके अनुरूप रणनीति बनाने पर भी जोर दिया।
कांग्रेस आलाकमान के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी जानते हैं कि 2003 और 2013 में सत्ता में रहते प्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार रिपीट करने में नाकामयाब रही। कांग्रेस की तरफ से पिछले दिनों दो सर्वे कराने की बात सामने आ रही है। एक सर्वे पार्टी आलाकमान ने निजी एंजेसी से कराया है तो दूसरा सर्वे मुख्यमंत्री ने कराया है। दोनों सर्वे में सरकार की योजनाओं से लेकर सरकार के कामकाज, मंत्रियों की परफॉर्मेंस और विधायकों की अपने क्षेत्र में छवि को लेकर सवाल पूछे गए थे। विधायकों से पूछे सवालों में भी कांग्रेस ने इन्ही मुद्दों पर उनसे राय मांगी है।
दिल्ली में रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
विधायकों से वन टू वन फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री का दो दिन दिल्ली में डेरा जमाने को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में उत्सुकता है। पार्टी के भीतर अनुशासनहीनता पर लगाम लगाने को लेकर पार्टी आलाकमान खासा चिंतित है। आलाकमान चुनावी दौर में गहलोत को फ्री हैंड तो दे रहा है, लेकिन वह सचिन पायलट को भी नाराज नहीं करना चाहता। पिछले दिनों पायलट और उनके समर्थक मंत्रियों-विधायकों की बयानबाजी को आलाकमान इस बार गंभीरता से ले रहा है। आलाकमान और गहलोत चुनावों में भाजपा से मुकाबले से पहले अपने घर को संभालना चाहते हैं। गहलोत की दो दिन की दिल्ली यात्रा के नतीजों पर कांग्रेस नेताओं के साथ भाजपा की भी पैनी नजर है।
96 में से सिर्फ 6 सीट, स्पीकर भी हारे
2008 के चुनाव में 96 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी कांग्रेस। 2013 के चुनाव हुए तो 96 में से सिर्फ 6 विधायक ही दुबारा जीतकर आ पाए। इनमें अशोक गहलोत, बृजेन्द्र ओला, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, गोविंद सिंह डोटासरा, मेवाराम जैन और श्रवण कुमार थे। श्रीमाधोपुर सीट से विधानसभाध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह भी भाजपा लहर में अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाए।
अध्यक्ष की जमानत जब्त
चुनाव नतीजों में एक बात बेहद चौकाने वाली रही। पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान मंडावा से न सिर्फ हारे बल्कि चौथे नंबर पर रहे और जमानत भी नहीं बचा पाए। चुनाव के नतीजे आए तो गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल रहे दुर्रू मियां, वीरेन्द्र बेनीवाल और रामकिशोर सैनी मुख्य मुकाबले में भी नहीं आ पाए। तीनों मंत्री तीसरे नंबर पर रहे। बीना काक 42 हजार से अधिक मतों से पराजित हुईं।
2013 में चुनाव में 21 पर सिमट गई थी पार्टी
2013 में हुए चुनाव गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल रहे 26 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। इनमें दिग्गज मंत्री शांति धारीवाल, भरत सिंह, बीना काक, परसादीलाल, जीतेन्द्र सिंह, दुर्रू मियां, ब्रजकिशोर शर्मा, भंवरलाल मेघवाल, हेमाराम, राजेन्द्र पारीक और हरजीराम बुरडक शामिल थे।
विवादों में रहे प्रभारी
प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से चल रही खींचतान के नहीं सुलझने के पीछे प्रभारी महासचिवों की भूमिका माना जा रहा है। एक खेमें के पक्ष में खड़े होने के विवादों के चलते पहले अविनाश पांडे की छुट्टी हुई। फिर दूसरे खेमें से नजदीकियों के चलते अजय माकन ने खुद पद से इस्तीफा दे दिया। अब नए प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा पर भी पक्षपात के आरोप लगने लगे हैं। प्रभारियों पर रैफरी की भूमिका में रहने की बजाए एक पाले में खड़े रहने के आरोप अनेक बार लग चुके। शायद इसी कारण आलाकमान तक सही तस्वीर नहीं पहुंच पाती।