भारत सरकार ने 59 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की है जो दुनिया भर के बड़े देशों विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा कर ऑप्रोशन सिंदूर व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर भारत का रुख स्पष्ट करेगा।

इनमें 51 राजनीतिज्ञों के साथ आठ राजदूत भी शामिल हैं। प्रतिनिधिमंडल के सात समूह हैं जिनमें कांग्रेस नेता शशि थरूर, भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद व बैजंत पांडा, जदयू के संजय झा, डीएमके से कणिमोझी, एनसीपी (पवार) की सुप्रिया सुले, शिवसेना (शिंदे) के श्रीकांत शिंदे के नाम शामिल हैं।

इनमें असदुद्दीन ओवैसी, सतनाम सिंह संधू, गुलाम नबी आजाद, एमजे अकबर, प्रियंका चतुव्रेदी, यूसुफ पठान, सलमान खुर्शीद, ईटी मोहम्मद बसीर, शांभवी, मिलिंद मुरली देवड़ा, मनीष तिवारी व मुरलीधरन आदि के नाम भी शामिल हैं। थरूर को अमेरिका समेत पांच अन्य देशों का दौरा करने वाले समूह की कमान सौंपी गई है।

चूंकि कांग्रेस की तरफ से दिए गए चार नामों में सरकार ने केवल आनंद शर्मा को शामिल किया। गौरव गोगोई, सैय्यद नासिर हुसैन व राजा बरार की बजाय थरूर को महत्त्व दिए जाने पर कांग्रेस ने नाराजगी भी व्यक्त की। उसने मोदी सरकार को निष्ठाहीन व गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों पर सस्ता राजनीतिक खेल करने वाला बताया।

इससे पहले भी संघर्ष विराम के ऐलान के बाद थरूर ने केंद्र सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व को लेकर भी उन्होंने भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए एक्स पर लिखा-जब राष्ट्रहित की बात या मेरी सेवाओं की जरूरत होगी, तो मैं पीछे नहीं रहूंगा।

कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में भी थरूर के प्रति नाराजगी व्यक्त की जा चुकी है और कहा गया कि उन्होंने लक्ष्मण रेखा पार कर ली है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मामले को और भी तूल बगैर उनका नाम लिए एक्स पर लिख कर जाहिर कर दी-कांग्रेस में होने और कांग्रेस का होने में फर्क है।

हालांकि पहले भी सरकारें इस तरह के प्रतिनिधिमंडलों को  प्रमुख मुल्कों में भेज कर अपना रुख दुनिया के समक्ष रखती रही हैं। नरसिंह राव ने कश्मीर मुद्दे पर तो मनमोहन सरकार ने मुंबई हमलों के बाद विभिन्न दलों के सदस्यों को भेजा था। देश की अखंडता को लेकर संवेदनशील वक्त में लगभग सभी विपक्षी दलों ने एकता दिखाई है।

पाक प्रायोजित आतंकवाद और सीमा पर सुरक्षा को लेकर हम कितने मुस्तैद हैं, दुनिया को बताने का यह उचित वक्त है। ऐसे में विचारधाराओं को लेकर विवादों को परे रखना ही उचित होगा।

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