नई दिल्ली: असम में शांति और समृद्धि की दिशा में एक और क़दम और एक नई शुरुआत होने जा रही है। भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के बीच एक त्रिपक्षीय शांति समझौते पर 29 दिसंबर को हस्ताक्षर किए जाएँगे।इस समझौते का मकसद असम में दशकों पुराने उग्रवाद को खत्म करना है. भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम है।
उल्फा पिछले कई दशकों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था।
शुक्रवार यानि 29 दिसंबर को शाम 5 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
शुक्रवार यानि 29 दिसंबर को शाम 5 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
दरअसल पूर्वोत्तर में शांति और विकास का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण के साथ शुरू हुआ था जिसमें उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के आठ राज्यों अष्टलक्ष्मी की संज्ञा दी थी।
उन्होने‘पूर्वोदय’ का विज़न हमारे सामने रखा ।इसके बाद गृह मंत्रालय ने ‘Whole of Government Approach’ के साथ पूर्वोत्तर की गरिमा, संस्कृति, भाषा, साहित्य और संगीत को समृद्ध करते हुए शांति और स्थिरता स्थापित करने के सफल प्रयास किये हैं।
इसी रणनीति का प्रभाव है की 2014 से लगातार उत्तर पूर्व में शांति का राज स्थापित हुआ है। अलगाववादी मुख्य धारा में सम्मलित हो रहे है, राज्यों के बीच सीमा विवाद निपट रहे है, एथनिक संघर्ष कम हो रहा है और विकास के नए आयाम बन रहे है। पूर्वोत्तर राज्य एक बार फिर से अष्टलक्ष्मी की उपाधि को चरितार्थ करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह लक्ष्य तय किया है कि उत्तरपूर्व के सभी विवादों को समाप्त कर पूर्वोत्तर में शांति, स्थिरता और विकास का नया युग शुरु हो।
अमित शाह बार बार यह कहते रहे हैं कि शांति के बगैर विकास नहीं हो सकता, अगर रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और हर व्यक्ति को घर और बिजली चाहिए तो ये हथियार उठाकर नहीं हो सकता। एक समय था, जब पूर्वोत्तर में आये दिन आन्दोलन, विवाद चलते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने सफलता से यह नेरेटिव सेट किया है कि “विकास के लिए आंदोलन या विवाद की नहीं, सहयोग और परिश्रम की जरूरत है।“
मोदी सरकार की स्पष्ट नीति और गृह मंत्री शाह की समयबद्ध रणनीतियों का ही परिणाम है कि धीरे-धीरे पूर्वोत्तर की सभी समस्याओं के समाधान किये जा रहे हैं और क्षेत्र शांति और स्तिरता की राह पर अग्रसर हो रहा है।
वर्ष 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा स्थिति में काफी सुधार हुआ है। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हर 15 दिन में पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा स्थिति एवं विकास कार्यक्रमों का रिव्यु किया जाता है ।
• सुरक्षा स्थिति में 2014 की तुलना में 2023 में
– विद्रोह की घटनाओं में 73% की कमी आई।
– सुरक्षा बलों के हताहतों में 71% और
– नागरिक मौतों में 86% की कमी आई है।
– विद्रोह की घटनाओं में 73% की कमी आई।
– सुरक्षा बलों के हताहतों में 71% और
– नागरिक मौतों में 86% की कमी आई है।
– 2014 से अब तक 8,900 से अधिक उग्रवादी सरेंडर कर चुके है
• वर्ष 2019 से पिछले 4 वर्षों में दो दशकों के दौरान की सबसे कम विद्रोह की घटनाएं तथा नागरिकों और सुरक्षा बलों की हताहत की घटनाएं हुयी है।
• वर्ष 2019 से पिछले 4 वर्षों में दो दशकों के दौरान की सबसे कम विद्रोह की घटनाएं तथा नागरिकों और सुरक्षा बलों की हताहत की घटनाएं हुयी है।
पिछले 9 वर्षों में विभिन्न सुरक्षा मदों व आत्मसमर्पण किए विद्रोहियों के पुनर्वास पर सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) में 3000 करोड़ रु. से अधिक की राशि जारी ।