बिहार में सियासत की बाजी में कब-क्या बदल जाए, कोई नहीं जानता। कभी रातों-रात सितारे चमक जाते हैं तो कभी बनती बाजी भी बिगड़ जाती है। नीतीश कुमार जिस तरह राजनीति में चौंकाते रहते हैं, वह भी सबके सामने है। बिहार की राजनीति में जीतन राम मांझी का नाम भी इन दिनों सुर्खियों में है। बिहार की सियासत के खेल में ऐसा क्या है, यह समझने मैं गया नगर पहुंचा। गया नगर मोक्षधाम के रूप में प्रसिद्ध है। यहां से 12 किलोमीटर दूर बोध गया है, जहां भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
बार-बार पाला बदलने के बाद यह कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार का प्रभाव कम होता जा रहा है, जबकि नीतीश कुमार को बिहार में 16.5 प्रतिशत वोट की गारंटी माना जाता रहा है। भाजपा जो नया नारा दे रही है कि लाभार्थी को पकड़ो, नीतीश कुमार ने इसे 2005 में पकड़ लिया था। नीतीश कुमार के लिए महिलाएं बहुत बड़ा वोट बैंक हैं। इतना ही नहीं, ओबीसी को भी ईबीसी वर्ग में बांटा। अति पिछड़ा वर्ग के रूप में नया वोट बैंक तैयार किया। जानकार मानते हैं कि एक वोट बैंक नीतीश के साथ चलता है, चाहे वे एनडीए में जाएं या आरजेडी के साथ रहें। बिहार के एक पत्रकार ने बताया कि नवंबर-दिसंबर में भाजपा ने एक इंटरनल सर्वे करवाया था। जनवरी में जब उसका परिणाम सामने आया तो भाजपा की चिंता बढ़ गई। भाजपा को नीतीश कुमार के कारण 10 से 12 सीट का नुकसान हो रहा था। इस सर्वे के बाद फैसला लिया गया कि हर हाल में नीतीश कुमार को एनडीए में लाना होगा।
बिहार में पहली बार एक साथ अलग-अलग विभागों में साढ़े तीन लाख नियुक्तियां हुई हैं। दो लाख से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती हुई है। करीब 50 हजार पद पुलिस विभाग में भरे गए। दो महीने के अंदर दो लाख शिक्षकों को नियुक्ति दे देना बड़ा काम माना जा रहा है। यह काम तब हुआ जब नीतीश कुमार का राजद के साथ गठबंधन था। तेजस्वी यादव इसे भुनाना चाहते हैं। वे रैली शुरू कर चुके हैं। वे युवा बेरोजगारों की बात कर रहे हैं।
बिहार में वर्ष 2020 में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसके बाद चार साल में तीन बार नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन गठबंधन बदलता रहा। 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर जदयू आ गई। राजद में नेतृत्व परिवर्तन होते ही वह बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। बिहार की राजनीति में एआइएमआइएम का भी उदय हुआ और पांच विधायक जीतकर आए।