सुप्रीम कोर्ट ऑन चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर ऐतिहासिक फैसला किया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बाल पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना पॉक्सो और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध हैं। उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द किया जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना अपराध नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने बाल पोर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों के मुद्दे पर दिशा निर्देश जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना या देखना POCSO के तहत अपराध माना है। भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने बाल पोर्नोग्राफी पर मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल अश्लील वीडियो डाउनलोड करना और देखना अपराध नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि ऐसे वीडियो को POCSO एक्ट की धारा 15(3) के तहत अपराध साबित करने के लिए यह साबित करना होगा कि वीडियो किसी फायदे के लिए स्टोर किया गया था। अदालत ने संसद को सुझाव दिया कि वह ‘बाल पोर्नोग्राफ़ी’ शब्द को ‘बाल यौन शोषण-अपमानजनक सामग्री’ से बदल दे। सरकार से इस संशोधन के लिए अध्यादेश लाने की अपील की गई है।
गौरतलब है कि केरल हाई कोर्ट ने 13 सितंबर 2023 को चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामले में फैसला सुनाया था कि अगर कोई व्यक्ति निजी तौर पर अश्लील तस्वीरें या वीडियो देख रहा है तो यह अपराध नहीं है, लेकिन उन वीडियो को दूसरों को दिखाना अपराध है। यह बयान देते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने एक आरोपी को बरी कर दिया। इसके बाद एक एनजीओ ने फैसले को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।