उत्तरप्रदेश में तीन बार सत्ता संभाल चुकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव अस्तित्व बचाने की चुनौती बन गए हैं। इस बार मुस्लिमों को सर्वाधिक टिकट देकर भी बसपा मुस्लिम नेताओं की कमी से जूझ रही है। दरअसल बसपा अब तक 25 प्रतिशत मुस्लिम प्रत्याशी उतार चुकी है, किंतु उसके पास मुस्लिम स्टार प्रचारक दस फीसदी भी नहीं हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इसका फायदा भी बसपा को हुआ था और महज 38 सीटों पर चुनाव लड़कर भी बसपा दस सीटें जीत गई थी। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में 37 सीटों पर चुनाव लडऩे के बाद महज पांच सीटें जीत सकी थी। वर्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल था।
सपा अब कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, तो राष्ट्रीय लोकदल भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए में शामिल हो गया है। ऐसे में वर्ष 2024 के चुनाव में बसपा के सामने सीटों की संख्या बढ़ाने से ज्यादा पुरानी सीटें बचाने की चुनौती है। साथ ही बसपा अपना वोट प्रतिशत बचाए रखने के लिए भी जूझ रही है। इसके लिए बसपा ने दलित-मुस्लिम समीकरण पर जोर दिया है। साथ ही पार्टी अपने शासन काल में मुस्लिमों के लिए किए गए काम भी प्रचार अभियान में गिना रही है।
बसपा उत्तर प्रदेश में अब तक 80 में से 37 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। इनमें से नौ प्रत्याशी मुस्लिम हैं। पार्टी ने सहारनपुर में माजिद अली, मुरादाबाद में मोहम्मद इरफान सैनी, रामपुर में जीशान खां, संभल में शौलत अली, अमरोहा में मुजाहिद हुसैन, आंवला में आबिद अली, पीलीभीत में अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू, लखनऊ में सरवर मलिक और कन्नौज में इमरान बिन जफर को प्रत्याशी बनाया है। इस तरह 25 प्रतिशत मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जा चुके हैं।
बसपा मुस्लिमों को टिकट भले ही ज्यादा दे रही है, किंतु पार्टी के भीतर मुस्लिम नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। पार्टी ने चुनाव अभियान के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है।
बसपा में मुस्लिम नेतृत्व का संकट बड़े मुस्लिम नेताओं के पार्टी छोड़ने के कारण हुआ है। इसकी शुरुआत कभी मिनी मुख्यमंत्री कहे जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी से हुई थी। इमरान मसूद और पिछले दिनों दानिश अली ने बसपा छोड़ दी।