गोद लिए बच्चे के साथ दत्तक मां-बाप का भावनात्मक लगाव नहीं पैदा हो पाया, इसलिए बंबई हाई कोर्ट ने दत्तक ग्रहण का आदेश रद्द कर दिया।
दिसम्बर, 2023 में बाल आशा ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि 17 अगस्त, 2023 का गोद लेने संबंधी आदेश अगर रद्द कर दिया जाता है तो बच्चे के हित में होगा। दत्तक माता-पिता द्वारा बच्चे के खराब बर्ताव और आदतों के बारे में ट्रस्ट से शिकायत की गई थी। तब ट्रस्ट ने यह याचिका दायर की।
अदालत ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण को जल्द से जल्द बच्चे को फिर से गोद लेने की खातिर पंजीकरण करने का भी निर्देश दिया। बच्चे के नाम जमा किए गए दो लाख रुपये और बच्चे के मूल दस्तावेज और रिपोर्ट भी उन्हें वापस करने के निर्देश दिए।
विचारणीय पक्ष यह भी है कि दंपति के एक पुत्री पहले ही है। उन्होंने हलफनामे में कहा कि वे बच्चे के साथ लगाव नहीं पैदा कर पाए। जाहिर है कि जिसके अपना बच्चा पहले ही होगा, वह दूसरे बच्चे के प्रति उस तरह का लगाव रखने में सक्षम नहीं हो सकता।
हो सकता है, बच्चे को कोई मनोवैज्ञानिक समस्या हो या वह किसी गहरे सदमे का शिकार रहा हो जिस कारण नये परिवार में तालमेल न बिठा पा रहा हो। अनाथ, बेसहारा या अनाथालयों में रहने वाले बच्चे कई दफा मुआफिक वातावरण न मिलने या मानसिक/शारीरिक रूप से प्रताड़ना के कारण भी निष्ठुर हो जाते हैं।
चार-पांच माह में उम्मीद करना कि वे नये माहौल या नये परिवार के अनुरूप ढल जाएंगे, जल्दबाजी ही कही जाएगी। मासूम बच्चों के मन में पड़ी खरोचों को समझने के लिए वात्सल्यपूर्ण व्यवहार की जरूरत होती है।
हालांकि दंपति ने ट्रस्ट को शिकायत करके बेहतर कदम उठाया है क्योंकि ऐसी घटनाएं भी आती हैं, जहां गोद लिए बच्चों के साथ दुर्व्यवहार होता है, या उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा है। बच्चों को पालना भावनात्मक और दुष्कर जिम्मेदारी है। आज के समय में कहना गलत न होगा कि बच्चे का पालन मोटी रकम भी मांगता है।
हो सकता है, बच्चे को गोद लेने के बाद दंपति को यह अहसास हुआ हो। यह फैसला बच्चे के बेहतर जीवन के लिए सार्थक हो सकता है। ट्रस्ट को बच्चे की काउंसिल के विषय में भी गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए ताकि वह अगले परिवार के साथ सुखमय जीवन का आनंद ले सके।