पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हाल ही में हुई हिंसा को लेकर भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने बुधवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो गई है और राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी है।
आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने कहा, “मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई और उसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जिम्मेदारी कानून-व्यवस्था बनाए रखने की थी, लेकिन वह चुप रहीं। कानून-व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन विषय है। मुर्शिदाबाद जल रहा है, फिर भी उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा। मुर्शिदाबाद में दंगाइयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं, बल्कि वह तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं। मैं ममता बनर्जी से पूछना चाहता हूं कि वह वक्फ कानून को लेकर मौलानाओं और इमामों से क्यों मुलाकात कर रही हैं। संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद कानून बना है और भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई है, लेकिन ममता बनर्जी कह रही हैं कि वह उसे बंगाल में लागू नहीं होने देंगी। मेरा मानना है कि वह हिंसा को खुद भड़का रही हैं और यही सच्चाई है।”
उन्होंने ममता बनर्जी पर आरोप लगाते हुए कहा, “मुर्शिदाबाद हिंसा से साफ जाहिर होता है कि वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को अपने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती हैं। यह भी खबरें सामने आ रही हैं कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या बंगाल में आकर दंगा कर रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि लोगों को मारा जा रहा है और उन्हें नदी पार करके मालदा में शरण लेनी पड़ रही है। इस देश के किसी भी राज्य में ऐसा नहीं हो रहा है। मुझे लगता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो गई है और राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी है।”
उन्होंने आगे कहा, “बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्याओं को आधार कार्ड जारी किए जा रहे हैं और उन्हें मतदाता सूची में जोड़ा जा रहा है। वह वोट बैंक की राजनीति के लिए राज्य की कानून-व्यवस्था को खतरे में डाल रही हैं।”
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने कहा, “वह (ममता बनर्जी) ‘इंडिया गठबंधन’ को वक्फ अधिनियम के विरोध में एकजुट करने की कोशिश क्यों कर रही हैं। अगर वास्तव में उन्हें ज्ञान है तो क्या इसका मतलब यह है कि वे पूरे देश में अशांति भड़काना चाहती हैं? क्या इसीलिए वे एक साथ आना चाहती हैं? क्या उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं है? अगर वह न्यायपालिका का सम्मान करती हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की योग्यता निर्धारित करेगा। देश संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर काम करता है, न कि धार्मिक नेताओं के बयानों के आधार पर।”