देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि न्यायाधीश जनता की ओर चुने नहीं जाते और न ही वे लोकप्रियता के आधार पर काम करते हैं इसलिए उनकी विश्वसनीयता और वैधता के लिए जनता का विश्वास आवश्यक है। जनता के विश्वास से ही जजों और अदालतों को नैतिक अधिकार प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का संचालन जनता की राय से अछूता रहता है इसलिए देश की संवैधानिक और अन्य अदालतों में विश्वास ही एक समृद्ध संवैधानिक व्यवस्था का आधार है। अदालतें आम नागरिकों के दैनिक जीवन की समस्याओं से निपटती हैं इसलिए उनका विश्वास और भी महत्वपूर्ण है।

सीजेआई चंद्रचूड़ जेएसडब्ल्यू स्कूल ऑफ लॉ में जिग्मे सिंघे वांगचुक व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जनता का विश्वास केवल न्यायालय की वैधता के बारे में ही बल्कि उसकी प्रक्रिया में भी है। इसलिए, संस्थागत डिजाइन, उनकी जवाबदेही, पारदर्शिता और सुलभता भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने उदाहरण दिया कि सूरज की रोशनी न केवल सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है बल्कि व विश्वास भी पैदा करती है। अदालतों में पारदर्शिता के लिए लाइव-स्ट्रीमिंग जैसे उपायों ने आंतरिक दक्षता ओर जवाबदेही को बढ़ाने में मदद की है।
सीजेआई ने कहा कि न्याय न केवल होना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। अदालत के निर्णयों को निष्पक्ष होने के साथ इन्हें प्राप्त करने की सहज सरल प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण है। उन्होंंने भारत की अदालतों में सरल और पारदर्शी प्रक्रिया के लिए किए गए तकनीकी सुधारों पर बात करते हुए कहा कि वर्चुअल सुनवाई, लाइव-स्ट्रीमिंग, ई-फाइलिंग, ऑनलाइन केस सूचना प्रणाली, क्षेत्रीय भाषाओं में निर्णयों का अनुवाद करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित उपकरणों का उपयोग, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों तक आसान पहुंच ने आम लोगों के लिए अदालती प्रक्रियाओं को समझना अधिक आसान बना दिया है। भाषाई अंतर, भौतिक दूरियां और जटिल प्रक्रियाएं जनता के विश्वास को खत्म करती हैं।

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