पूर्व सांसद धनंजय सिंह पर 33 साल पहले मुकदमा दर्ज हुआ था। 2023 में आखिरी मामला दर्ज हुआ था। नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का करीब 3 साल 10 महीने पहले अपहरण कराने, रंगदारी मांगने और गाली-गलौज कर धमकी देने का मामला दर्ज हुआ था। पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके सहयोगी संतोष विक्रम सिंह को एडीजे चतुर्थ (MP/MLA) कोर्ट ने दोषी पाया।
कोर्ट ने धनंजय सिंह और संतोष विक्रम को दोष सिद्ध वारंट बनाकर जिला जेल भेज दिया है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले का अभियुक्त पूर्व सांसद है। उसके ऊपर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। उसका क्षेत्र में काफी नाम है, जबकि वादी मात्र सामान्य नौकर है। ऐसे स्थिति में वादी का डरकर अपने बयान से मुकद जाना अभियुक्त को कोई लाभ नहीं देता है, जबकि मामले में अन्य परि‌स्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद हों।
10 मई 2020 को मुजफ्फरनगर के अभिनव सिंघल ने लाइन बाजार थाने में अपहरण, रंगदारी और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। अभिनव सिंघल का आरोप था कि संतोष विक्रम सिंह और दो अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। अभिनव सिंघल का आरोप था कि संतोष विक्रम सिंह और दो लोग पचहटिया साइट पर आए थे। वहां के असलहे के बल पर चार पहिया वाहन से उनका अपहरण कर मोहल्ला कालीकुत्ती स्थित धनंजय सिंह के घर ले जाया गया।
धनंजय सिंह पिस्टल लेकर आया और गाली–गलौज करने लगा। उनकी फर्म को कम गुणवत्ता वाली सामग्री की आपूर्ति करने के लिए दबाव डालने लगा। उनके इन्कार करने पर धमकी देते हुए धनंजय सिंह ने रंगदारी मांगी। किसी प्रकार से उनके चंगुल से निकलकर लाइन बाजार थाने गए। आरोपियों के‌ खिलाफ तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने धनंजय सिंह को उसके आवास से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था, जहां से वह न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत पर धनंजय जेल से बाहर आया था।
जौनपुर के पूर्व सांसद बाहुबली धनंजय सिंह का आपराधिक इतिहास तीन दशक से ज्यादा समय का है। पुलिस डोजियर के अनुसार धनंजय सिंह के खिलाफ वर्ष 1991 से 2023 के बीच जौनपुर, लखनऊ और दिल्ली में 43 आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए। इनमें से 22 मामलों में अदालत ने धनंजय को दोषमुक्त कर दिया है। तीन मुकदमे शासन ने वापस ले लिए हैं। हत्या के एक मामले में धनंजय की नामजदगी गलत पाई गई और धमकाने से संबंधित एक प्रकरण में पुलिस की ओर से अदालत में फाइनल रिपोर्ट दाखिल की गई। यह पहला मामला है, जिसमें धनंजय को दोषी करार दिया गया।
जौनपुर के सिकरारा थाना के बनसफा गांव के मूल निवासी धनंजय सिंह ने जौनपुर के टीडी कॉलेज से छात्र राजनीति की शुरुआत की। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में अभय सिंह से दोस्ती हुई। इसके बाद हत्या, सरकारी ठेकों से वसूली, रंगदारी जैसे मुकदमों में नाम आने लगा। देखते ही देखते धनंजय सिंह का नाम पूर्वांचल से लेकर लखनऊ तक सुर्खियों में छा गया। धनंजय के खिलाफ वर्ष 1991 में पहला मुकदमा जौनपुर के लाइनबाजार थाने में गैरकानूनी जनसमूह का सदस्य होने और धमकाने सहित अन्य आरोपों में दर्ज किया गया था। इसके बाद धनंजय के खिलाफ आपराधिक मुकदमों की सूची लंबी होती चली गई।
धनंजय सिंह का नाम वर्ष 1998 तक लखनऊ से लेकर पूर्वांचल के जिलों तक अपराध जगत में सुर्खियों में आ चुका था। धनंजय पर पुलिस की ओर से 50 हजार का इनाम घोषित किया गया था। अक्तूबर 1998 में पुलिस ने बताया कि 50 हजार के इनामी धनंजय सिंह तीन अन्य लोगों के साथ भदोही-मिर्जापुर रोड पर स्थित एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने आया था। पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ में धनंजय सहित चारों लोग मारे गए हैं। हालांकि धनंजय जिंदा था और भूमिगत हो गया था।
धनंजय फरवरी 1999 में धनंजय अदालत में पेश हुआ तो भदोही पुलिस के फर्जी मुठभेड़ का पर्दाफाश हुआ। धनंजय के जिंदा सामने आने पर मानवाधिकार आयोग ने जांच शुरू की और फर्जी मुठभेड़ में शामिल रहे 34 पुलिसकर्मियों पर मुकदमे दर्ज हुए।
धनंजय सिंह और अभय सिंह वर्ष 2002 आते-आते एक-दूसरे के खिलाफ हो गए थे। अक्तूबर 2002 में बनारस से जा रहे धनंजय के काफिले पर नदेसर में टकसाल टॉकीज के सामने गोलीबारी हुई। गोलीबारी में धनंजय के गनर सहित काफिले में शामिल अन्य लोग घायल हुए थे। प्रकरण को लेकर धनंजय ने कैंट थाने में अभय सिंह सहित अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। यह मुकदमा फिलहाल विचाराधीन है।
जौनपुर पुलिस के मुताबिक विनोद नाटे नाम के एक बाहुबली नेता हुआ करते थे। विनोद को कुख्यात मुन्ना बजरंगी का गुरु भी कहा जाता है। विनोद नाटे ने रारी विधानसभा से चुनाव जीतने के लिए खासी मेहनत की थी। उसी दौरान सड़क दुर्घटना में विनोद की मौत हो गई। इसके बाद धनंजय ने विनोद की तस्वीर को अपनी राजनीति का सहारा बनाया और लोगों की संवेदनाएं बटोरते हुए 2002 में वह रारी से निर्दलीय विधायक बना।

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