राजनीतिक दलों की ओर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) से तैयार डीपफेक का इस्तेमाल शुरू हो गया है। डीपफेक वीडियो, वाइस क्लोनिंग से मैसेज तैयार कर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर शेयर किए जा रहे हैं। एआइ की मदद से तैयार किए जा रहे कंटेट से अपनी पार्टी और उम्मीदवार का प्रचार किया जाता है या अन्य उम्मीदवारों पर निशाना साधा जाता है।

हाल ही तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके की एक शाखा के सम्मेलन में दिवंगत द्रविड़ नेता एम. करुणानिधि अतिथि के रूप में बड़ी स्क्रीन पर दिखाई दिए। वह अपने ट्रेडमार्क धूप के काले चश्मे, सफेद शर्ट और पीले शॉल में थे। उन्होंने अपने बेटे एम. के. स्टालिन के नेतृत्व में राज्य में मौजूदा नेतृत्व की जमकर प्रशंसा की। करुणानिधि का 2018 में निधन हो गया था। उनका डीपफेक वीडियो एआइ की मदद से तैयार किया गया। इसको लेकर चुनाव में एआइ के दुरुपयोग पर चर्चा शुरू हो गई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव में एआइ का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाएगा। इससे पहले 2014 के चुनाव में सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इस साल की शुरुआत से भाजपा और कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर कई बार एआइ के माध्यम से बनाया गया कंटेंट शेयर किया है।

विशेषज्ञों ने चुनाव आयोग से एआइ जनरेटेड कंटेंट के दुरुपयोग से निपटने के लिए प्रयासों को तेज करने की मांग की है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच के प्रमुख अनिल वर्मा का कहना है कि सोशल मीडिया प्लटफॉर्म में वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली नहीं होती है। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, इन पर नियंत्रण संभव नहीं है। ऐसी चीजों को वायरल होने के लिए कुछ घंटे ही काफी हैं। इस बारे में जानकारी मिलने तक काफी नुकसान हो सकता है।

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