दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके साझेदारों के पक्ष में दिए गए मध्यस्थता निर्णय को बरकरार रखा गया था। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने केंद्र सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें एकल न्यायाधीश के नौ मई, 2023 के फैसले को चुनौती दी गई थी।

फैसला मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के पक्ष में पारित किया गया था। एकल न्यायाधीश ने मध्यस्थता निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा था कि वह यह मानने के लिए सहमत नहीं है कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा निकाले गए निष्कर्ष ऐसे हैं जिन पर कोई भी विवेकशील व्यक्ति नहीं पहुंच सकता।

एकल न्यायाधीश ने कहा था, “यह कहना पर्याप्त है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा लिया गया दृष्टिकोण निश्चित रूप से एक ‘संभावित दृष्टिकोण’ है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

उपरोक्त चर्चा के अनुक्रम में, इस न्यायालय को बहुमत के मध्यस्थ निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिलता है; जिसे तदनुसार बरकरार रखा जाता है।” फिलहाल कंपनी की ओर से कोई टिप्पणी नहीं मिल सकी है।

हालांकि, वे उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने जुलाई, 2018 में आरआईएल और उसके साझेदारों के खिलाफ भारत सरकार के 1.55 अरब डॉलर के दावे को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ऐसे भंडारों से गैस निकाली, जिनका दोहन करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं था।

रिलायंस ने शेयर बाजार को दी सूचना में कहा कि तीन सदस्यीय समिति ने 2-1 के बहुमत से तीनों भागीदारों को 83 लाख डॉलर का मुआवजा भी देने का आदेश दिया है।

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