दिल्ली की हवा के रुख को समझने वाले मान चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी नए रास्ते पर चल पड़ी है। पहले विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ इन तीन राज्यों में मुख्यमंत्री चुनकर बदलाव के संकेत दे दिए थे। लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में भी कमोबेश वही फार्मूला अपनाया जा रहा है। फार्मूला यह कि पार्टी लाइन से भटकने वालों को टिकट नहीं।
जिन पर दाग लगे हैं, दाग कैसे भी हो सकते हैं, पार्टी उनसे भी दूरी बनाती हुई नजर आ रही है। वरुण गांधी का उदाहरण सामने है। उम्र भी ज्यादा नहीं है, पर टिकट कट गया। पर वरुण की मां को टिकट मिल गया। यानी मतलब समझने की जरूरत है। नए चेहरों को भाजपा में पहले शायद ही इतनी बड़ी तादाद में मौका मिला हो। महिला शक्ति वंदन को भी टिकट वितरण में चरितार्थ किया जा रहा है।
अब तक घोषित 398 प्रत्याशियों में 66 महिलाओं को मैदान में उतारा जा चुका है। जबकि पिछले चुनाव में 436 उम्मीदवारों में सिर्फ 55 ही महिलाएं थीं। लगभग सौ नए चेहरे लाना भी पार्टी की दूरगामी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। अनेक मौजूदा सांसदों के टिकट कटने के बावजूद पहले जैसी बगावत के सुर कहीं से सुनने को नहीं मिल रहे हैं।
दिल्ली के लुटियंस जोन में राजनीति के जानकारों का मानना है कि ये बदलाव जारी रहने वाले हैं। रणनीति यह दिखाने की भी है कि पार्टी चुनाव जीत रही है। पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं का मानना है कि चुनाव में वोट प्रत्याशी के नाम पर नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ मोदी के नाम पर ही पड़ेंगे, तो फिर चिंता किस बात की।