पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के चांदनी चौक से भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ हर्षवर्धन ने रविवार को सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया। बता दें कि भाजपा ने शनिवार को जब अपने 195 उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उसमें चांदनी चौक सीट का भी नाम था। लेकिन पार्टी ने इस बार इस सीट से दो बार के सांसद डॉ हर्षवर्धन की जगह प्रदीप खंडेलवाल को अपना उम्मीदवार बनाया है।


प्रधानमंत्री मोदी की पहली सरकार में स्वास्थय विभाग के कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे। इसके साथ ही उन्होंने कुछ समय तक पृथ्वी और अंतरिक्ष विभाग का भी कार्यभार संभाला था। बता दें कि डॉ हर्षवर्धन 2014 से लगातार चांदनी चौक से सांसद हैं।

डॉ हर्षवर्धन ने राजनीति से सन्यास लेने का ऐलान करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट एक्स पर लिखा, “तीस साल से अधिक के शानदार चुनावी करियर के बाद, जिसके दौरान मैंने सभी पांच विधानसभा और दो संसदीय चुनाव लड़े, जो मैंने रिकॉर्ड अंतर से जीते, और पार्टी संगठन और राज्य और केंद्र की सरकारों में कई प्रतिष्ठित पदों पर काम किया। अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए नमन। पचास साल पहले जब मैंने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने की इच्छा के साथ जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर में एमबीबीएस में प्रवेश लिया तो मानव जाति की सेवा ही मेरा आदर्श वाक्य था। दिल से एक स्वयंसेवक, मैं हमेशा पंक्ति में अंतिम व्यक्ति की सेवा करने के प्रयास के दीन दयाल उपाध्याय जी के अंत्योदय दर्शन का उत्साही प्रशंसक रहा हूं। तत्कालीन आरएसएस नेतृत्व के आग्रह पर मैं चुनावी मैदान में कूदा। वे मुझे केवल इसलिए मना सके क्योंकि मेरे लिए राजनीति का मतलब हमारे तीन मुख्य शत्रुओं – गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ने का अवसर था।” वहीं, कुछ लोग ये भी बता रहे हैं कि हर्षवर्धन अपना टिकट कटने से नारज है। इसलिए उन्होंने राजनीति से सन्यास लेने का फैसला किया है।

लोकसभा का टिकट कटने के बाद दक्षिणी दिल्ली से सांसद भाजपा सांसद रमेश बिधूड़़ी का भी दर्द छलक उठा हुआ है। रविवार को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने इशारों इशारों में अपना दर्द बयां किया और कहा कि कई बार बाहर से आए मेहमानों के लिए नई चादर बिछाई जाती है और घर के सदस्य पुरानी पर ही सोते हैं।

हालांकि बिधूड़ी ने आगे कहा कि बीजेपी बड़ी पार्टी है परिवारों की पार्टी नहीं है। और हम लोग कार्यकर्ता हैं जो विचारों के लिए लड़ते हैं। पार्टी में जब भी बाहर से लोग आते हैं तो उनके लिए वैसा ही है जैसे बाहर से आए मेहनामों के लिए नई चादर बिछाई जाती है और परिवारवालों को पुरानी पर ही सोना होता है क्योंकि घर में मेहमान आए होते हैं। मेहमानों के लिए परिवारवालों को ही दिल मजबूत करके सम्मान करके रखना होता है।

दरअसल, राजनीति के जानकार मानते हैं कि पवन के इस तरह से पीछे हटने की वजह बंगाल भाजपा नेताओं का दबाव है। उनका टिकट बंगाल बीजेपी के नेताओं के कहने पर ही पार्टी हाईकमान ने वापस ले लिया है। इसके साथ ही वहां पर बंगाली अस्मिता, बाहरी आदि मामला तूल पकड़ सकता था। ममता बनर्जी और कांग्रेस इस मामले को तूल देते इससे पहले ही भाजपा ने टिकट वापस ले लिया है।

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