ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण के दौरान प्राचीन शिवलिंग मिलने के दावे के बाद वाराणसी जिला न्यायालय ने उसे संरक्षित घोषित कर वजू करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस मामले में हिंदू पक्ष ने जिला न्यायालय से मांग किया था कि शिवलिंग जिसे आदि विशेसर भगवान कहा जा रहा है, उसे कार्बन डेटिंग या अन्य वैज्ञानिक उपायों से पता लगाया जाए कि कितना प्राचीन है। जिस पर जिला अदालत ने हिंदू पक्ष के खिलाफ फैसला दिया था और यह कहा था कि इससे शिवलिंग को नुकसान पहुंच सकता है। इसके बाद मामला हाईकोर्ट चला गया था।
हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई के बाद एएसआई की राय लेकर हिंदू पक्ष की मांग के अनुसार फैसला दिया और कहा कि शिवलिंग को बिना नुकसान पहुंंचाए कार्बन डेटिंग कर पता लगाया जाना चाहिए कि यह कितना प्राचीन है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील किया है। मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील हुजेफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है। जिसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट ने एक सप्ताह पहले आदेश पारित किया है जिसमें कार्बन डेटिंग की अनुमति प्रदान की गई है। अब इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूण और न्यायमूर्ति पीएस नरसिंहा, जेबी पादरीवाला कल सुनवाई करेंगे।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील किया है। मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील हुजेफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है। जिसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट ने एक सप्ताह पहले आदेश पारित किया है जिसमें कार्बन डेटिंग की अनुमति प्रदान की गई है। अब इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूण और न्यायमूर्ति पीएस नरसिंहा, जेबी पादरीवाला कल सुनवाई करेंगे।
एएसआई ने हाईकोर्ट में कहा…
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों, आईआईटी और विशेषज्ञों से रायशुमारी कर हाईकोर्ट को बताया था कि तकनीक काफी आगे निकल चुकी है और कार्बन डेटिंग बिना शिवलिंग को स्पर्श किए भी किया जा सकता है। दरअसल वाराणसी कोर्ट ने इसी आधार पर रोक लगाई थी कि शिवलिंग का दस ग्राम हिस्सा कार्बन डेटिंग के लिए निकालना पड़ेगा जिससे शिवलिंग क्षतिग्रस्त होगा। लेकिन अब एएसआई ने कहा है कि रेडियो कार्बन की पहचान के लिए नई तकनीक आ चुकी है और बिना किसी नुकसान के शिवलिंग की प्राचीनता का पता लगाया जा सकता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों, आईआईटी और विशेषज्ञों से रायशुमारी कर हाईकोर्ट को बताया था कि तकनीक काफी आगे निकल चुकी है और कार्बन डेटिंग बिना शिवलिंग को स्पर्श किए भी किया जा सकता है। दरअसल वाराणसी कोर्ट ने इसी आधार पर रोक लगाई थी कि शिवलिंग का दस ग्राम हिस्सा कार्बन डेटिंग के लिए निकालना पड़ेगा जिससे शिवलिंग क्षतिग्रस्त होगा। लेकिन अब एएसआई ने कहा है कि रेडियो कार्बन की पहचान के लिए नई तकनीक आ चुकी है और बिना किसी नुकसान के शिवलिंग की प्राचीनता का पता लगाया जा सकता है।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शुरु हुई खोज
कार्बन डेटिंग प्रक्रिया की खोज तो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ही शुरु हो गई थी। लेकिन इसे पूरी तरह कार्यरुप 1949 में दिया गया। शिकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक बिलियर्ड लिबी ने इसे खोजा था जिसमें रेडियो कार्बन कणों के आधार पर किसी चीज की प्राचीनता की सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है। कार्बनिक पदार्थो की आयु का पता लगाने की यह विधि भी मानी जाती है। आमतौर पर इसका प्रयोग प्राचीन इतिहास के पुरातत्व संबंधी चीजों की आयु निर्धारण में किया जाता रहा है।
कार्बन डेटिंग प्रक्रिया की खोज तो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ही शुरु हो गई थी। लेकिन इसे पूरी तरह कार्यरुप 1949 में दिया गया। शिकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक बिलियर्ड लिबी ने इसे खोजा था जिसमें रेडियो कार्बन कणों के आधार पर किसी चीज की प्राचीनता की सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है। कार्बनिक पदार्थो की आयु का पता लगाने की यह विधि भी मानी जाती है। आमतौर पर इसका प्रयोग प्राचीन इतिहास के पुरातत्व संबंधी चीजों की आयु निर्धारण में किया जाता रहा है।
कार्बन-14 का क्षय होता है
डेटिंग प्रक्रिया इस बात पर आधारित है कि कार्बन-14 रेडियो एक्टिव है और इसका एक निश्चित क्रम में क्षय होता रहता है। सी-14 का परमाणु द्रव्यमान 14 होता है, वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक सी-12 है, जबकि सी-14 की बहुत कम मात्रा मौजूद रहती है। वातावरण में सी-14 और सी-12 का अनुपात स्थिर है और ज्ञात है। कार्बन डेटिंग से 500 साल से लेकर पचास हजार साल तक की जानकारी ली जा सकती है।
डेटिंग प्रक्रिया इस बात पर आधारित है कि कार्बन-14 रेडियो एक्टिव है और इसका एक निश्चित क्रम में क्षय होता रहता है। सी-14 का परमाणु द्रव्यमान 14 होता है, वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक सी-12 है, जबकि सी-14 की बहुत कम मात्रा मौजूद रहती है। वातावरण में सी-14 और सी-12 का अनुपात स्थिर है और ज्ञात है। कार्बन डेटिंग से 500 साल से लेकर पचास हजार साल तक की जानकारी ली जा सकती है।