लखनऊ: अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विशेष अतिथियों के साथ साध्वी ऋतम्भरा को भी ससम्मान शामिल होने का निमंत्रण मिला है। 22 तारीख को होने वाले भव्य और विशाल आयोजन में निमंत्रण मिलने से वह बेहद खुश नजर आ रही हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही है। शनिवार को अयोध्या रवाना होने से पहले साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि जो श्रीराम का नहीं है वो किसी काम का नहीं है।

साध्वी ने एक समाचार पत्र को दिए इंटरर्व्यू में कहा कि वह राम मंदिर आंदोलन में राम की लड़ाई लड़ने आयी थी। यह लड़ाई भारत के स्वाभिमान की थी। मैंने पहले दिन ही तय कर लिया था कि मंदिरों की लड़ाई को सत्ता से परे रखूंगी। इस लड़ाई में मैंने जो दुःख झेले, जो प्रताड़नाएं सहीं, दुनिया के सामने मेरी जो तस्वीर बनाई गई। विदेशों में मुझे जिस नजरिये से देखा गया। इंग्लैण्ड का वीजा मिलने में जो दिक्कतें आई। उसने मुझे इस बात के लिए तैयार किया कि राम का संघर्ष जारी रखना है और सत्ता के रास्ते नहीं बढ़ना है।

साध्वी ने कहा कि मुझे लगता है कि मेरे जैसे लोगों को सत्ता से दूर रहकर राजनीति को सचेत करने का काम करना चाहिए। राजनीति में अच्छे लोग आने लगे थे। मैंने समझ लिया था कि यह अच्छे लोग राम मंदिर का रास्ता बनाएंगे। इसी वजह से मैं आश्रम बनाकर सुखी हो गई। वृन्दावन में वात्सल्य आश्रम के जरिये मैंने कितना बढ़िया काम किया इसे देखने के बजाय लोग लगातार मुझ पर आरोप लगाते रहे। आज मोदी जी और योगी जी ने साबित कर दिया कि सत्ता सही रास्ते पर हो तो राजनीति सही दिशा में बढ़ ही जाती है।

साध्वी ने कहा कि संविधान की रक्षा तो सत्ता के सामने पहली शर्त होती है। राम मंदिर आन्दोलन में मैंने संविधान की धज्जियां उड़ते देखा। संविधान बचाने के नाम पर निहत्थे राम भक्तों पर गोलियां चलाई गई। यह गोलियां तुष्टिकरण के नाम पर चलाई गई थी। यह बात सभी को अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि भारत सम और कृष्ण के बिना कुछ नहीं है। । राम की लड़ाई तो भारत के स्वाभिमान की लड़ाई थी। हमे खुशी है कि उस लड़ाई का हम हिस्सा रहे।
इस सवाल पर साध्वी ने कहा कि राजनीति करने वाले तो राजनीति ही करेंगे। यह उनका पेशा है। उन्हें हम क्या कहे। बस यही कह सकते हैं कि ऐसी राजनीति करने वालों के दिन लद गए। राजनीति करने वालों को जनता के मन को समझना होगा। राजनीति सत्य को स्थापित करने के लिए है। राजनीति भारत को गाली देने के लिए नहीं है। राजनीति भाग्य बदल देने का नाम भी है। यही बात समझ ली गई होती तो भारत को संताप के दिन नहीं देखने पड़ते। भारत को उसका खोया गौरव बहुत पहले ही मिल गया होता। राजनीति के लिए कुशलता की जरूरत होती है। राजनीति करने वाले का लक्ष्य निधारित होना चाहिए। मैं आज देख पा रही हूं कि बीजेपी वाले जोते या हारे लेकिन उनका लक्ष्य राम का मंदिर ही रहा। वह कभी लक्ष्य से नहीं भटके। नतीजा देखिए आज बीजेपी पर सवाल उठाने वालों के पेट में दर्द हो रहा है। भाग्य बदल गया या नहीं।

 

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