परिवार, प्यार, और ढेर सारा ड्रामा हमेशा से ही लव स्टोरीज में देखें जाते हैं, तो करण जौहर की ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में नया क्या है?

यह बस इतना है कि यह ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ है, लेकिन फिर भी, इसमें बहुत बड़ा अंतर भी है। धर्मेंद्र, शबाना आजमी और जया बच्चन जैसे दिग्गजों की उपस्थिति और यूनिक कॉम्बिनेशन के अलावा, रणवीर सिंह और आलिया भट्ट के बीच की केमिस्ट्री है, जो लगभग तीन घंटे लंबे इस फैमिली एंटरटेनर का मुख्य आकर्षण है।

और हां, इसमें प्रीतम का थिरकने वाला म्यूजिक भी है, हालांकि दर्शकों को जो सबसे ज्यादा पसंद आ रहा है वह 60 से 80 के दशक की कुछ सबसे लोकप्रिय हिंदी फिल्म हिट के गाने भी है।

इसके अलाव, करण जौहर ने स्क्रिप्ट में कई ऐसे गंभीर मुद्दों को उठाने की कोशिश भी है, जो समाज में होता हैं।

यह दर्शकों को हर तरह से मजा दिलाने वाला एक फैमिली ड्रामा है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है, “कपल्स के लिए, स्टीयरिंग व्हील उनके हाथों में हो सकता है, लेकिन पीछे की सीट पर ड्राइवर के रूप में

संचालन करने वाला परिवार होता है।”

दिल्ली का लड़का रॉकी रंधावा (रणवीर सिंह) एक बड़बोला और तेजतर्रार पंजाबी लड़का है, वह सबसे बड़े मिठाई वाले खानदान का एकलौता वारिस है। वह एक संयुक्त परिवार में रहता है, जहां घर और मिठाई के बिजनेस पर उसकी सख्त दादी धनलक्ष्मी (जया बच्चन) का राज चलता है।

धनलक्ष्मी का खौफ इतना है कि उसकी बहू (क्षिति जोग) और पोती गायत्री (अंजलि आनंद) उससे डरती है। यहां तक कि उनका आज्ञाकारी बेटा तिजोरी (आमेर बशीर) भी किसी पारिवारिक मामले में स्वतंत्र फैसला नहीं ले सकता।

एक दिन रॉकी की याददाश्त गंवा चुके दादा कंवल रंधावा (धर्मेंद्र) पार्टी में गेस्ट (शीबा) को जामिनी समझकर किसिंग का इशारा करता है। जब इसका पता रॉकी को चलता है, तो वह यह पता लगाना शुरू करता है कि जामिनी कौन है?, उसके हाथ अपने दादा और जामिनी के जवानी के दिनों की एक ब्लैक एंड वाइट फोटो लगती है, 1978 की थी।

यहां रॉकी अपने दादा के एकतरफा प्यार जामिनी की तलाश में अपने सबसे अच्छे दोस्त (अभिनव शर्मा) के साथ निकल पड़ता है। इस कोशिश के दौरान उसकी मुलाकात टीवी न्यूज एंकर रानी चटर्जी (आलिया भट्ट) से होती है, जो अपने माता-पिता (चुर्नी गांगुली और टोटा रॉयचौधरी) और दादी जामिनी चटर्जी के साथ रहती है। बता दें कि जामिनी का किरदार शबाना आजमी ने निभाया है।

रॉकी और रानी दोनों बहुत अलग है। उनकी संस्कृति, उनके राजनीतिक विचार, उनकी जीवनशैली और यहां तक कि भाषा भी।

वक्त के साथ मुलाकातें बढ़ने लगती है और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। दोनों परिवारों के बीच का कल्चरल डिफरेंस को मिटाने के लिए एक-दूसरे के घर तीन महीने तक रहने का फैसला करते है।

लेखिका इशिता मोइत्रा, शशांक खेतान और सुमित रॉय ने उस रुटीन लाइफस्टाइल को रेखांकित किया है, जो पंजाबियों और बंगालियों को विरासत में मिलती है। फिल्म इस विविधता के हर हिस्से का भरपूर उपयोग करती है।

जौहर ने हमारे समाज में प्रचलित कई लेबलों और दकियानूसी सोच को भी तोड़ा है। जैसे परिवारों में कैसे डर के मारे सालों से चीज़ें चली आ रही हैं, जिसे सम्मान का नाम दिया जा रहा है। पितृसत्तात्मकता की मानसिकता पर वार करते हुए रॉकी के परिवार की मुखिया एक महिला है। बॉडी शेमिंग किस तरह से व्यक्ति को मानसिक रुप से प्रभावित करती है। बेहतरीन सिंगिंग टैलेंट वाली बहू पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते अपने सपनों का गला घोंट रही है। उसका रियलिटी शो में भाग लेने का मन है।

तोता रॉय चौधरी, एक ऐसे पिता के रूप में हैं, कथक के प्रति अपने जुनून को दिखाते है। लेकिन उन्हें कथक करने से मना किया जाता है, क्योंकि उनका कई बार मजाक उड़ाया गया है। वहीं उनकी ऑन-स्क्रीन पत्नी, जिसका किरदार चुर्नी ने निभाया है, जो बंगाली सिनेमा और धारावाहिकों का एक जाना-माना चेहरा है, अंग्रेजी की प्रोफेसर है। जिसे अपने दैनिक व्यवहार में ब्रिटिश अंग्रेजी का उपयोग करने की आदत है।

दर्शक इतने लंबे समय के बाद स्क्रीन पर धर्मेंद्र की वापसी को पसंद करेंगे और उनका स्वागत करेंगे। फिल्म में उनकी उपस्थिति क्लास का जादू बिखेरती है, वह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए प्रदर्शित होते हैं।

महान अभिनेता-निर्देशक आमेर बशर एक दमनकारी मां के बेटे की भूमिका में बिल्कुल फिट बैठे हैं। जया बच्चन और शबाना आज़मी, दोनों ही शानदार कलाकार हैं। चटर्जी के रूप में आजमी, जो रुक-रुक कर बांग्ला बोलती है। वहीं फिल्म में जया का परिवार में हर कोई सम्मान करता है, वह अपनी भूमिका में गरिमा जोड़ती है।

दर्शकों को सबसे ज्यादा पसंद म्यूजिक आएगा। फिल्म में ‘अभी ना जाओ छोड़ कर’, ‘मस्त बहारों का मैं आशिक’, ‘झुमका गिरा रे’ और कई अन्य को रीमिक्स किया गया है और कहानी में सहजता से बुना गया है।

एक सीन हाई प्वाइंट पर है, जिसमें दो मेल एक्टर्स आत्मविश्वास के साथ ‘डोला रे डोला’ पर परफॉर्म कर रहे हैं। रंधावाओं द्वारा तुच्छ समझे जाने के बाद, जो चटर्जी के पिता के कथक करने पर हंसते थे और तिरस्कार करते थे, सिंह और रॉयचौधरी की जोड़ी ने यह साबित करने के लिए सभी बाधाओं को तोड़ दिया कि कला का कोई लिंग नहीं होता है और जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए।

मानुष नंदन की फोटोग्राफी हर चीज और हर अभिनेता को शानदार बनाती है। लोकप्रिय सिंगर अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल, जोनिता गांधी और भूमि त्रिवेदी ने फुल-टोन बीट्स पर अपनी तराशी हुई आवाजें दीं, जिन्हें आज के युवा पसंद करते हैं।

जौहर युद्धरत या असहमत परिवारों की पृष्ठभूमि पर आधारित प्रेम कहानियों से निपटने में सबसे सहज हैं।

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