ब्रिक्स समूह की तेजी से बढ़ रही लोकप्रियता के बीच इसके विस्तार को लेकर क्या रणनीति हो, इसको लेकर समूह के दो अहम सदस्यों चीन और भारत में मतभेद सामने आ गए हैं। मंगलवार को डरबन में शुरू हुई तीन दिवसीय ब्रिक्स शेरपा की मीटिंग में दोनों देशों ने इसको लेकर अपना पक्ष रखा है। भारत चाहता है कि विकासशील देशों के समूह ब्रिक्स में नए सदस्यों का प्रवेश पूर्व निर्धारित सुस्पष्ट मानदंड के आधार पर होना चाहिए, न कि सिर्फ मौजूदा सदस्यों की अनुशंसा के आधार पर नए सदस्य बनाए जाएं।
अब तक 19 देशों ने ब्रिक्स की सदस्यता में रुचि व्यक्त की है। इनमें से 13 देशों ने औपचारिक रूप से और 6 देशों ने अनौपचारिक रूप से रुचि दिखाई है। इच्छुक देशों में अर्जेंटीना, नाइजीरिया, अल्जीरिया, इंडोनेशिया, मिस्र, बहरीन, सऊदी अरब, मैक्सिको, ईरान, इराक, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान ने भी सदस्य बनने में रुचि दिखाई है।
बैठक में ये साफ हो गया है कि कुछ मौजूदा सदस्य कुछ देश विशेष की सदस्यता के लिए जोर दे रहे हैं। जैसे ब्राजील को जोर अर्जेंटीना को सदस्य बनाने पर है। वहीं, चीन तथा रूस चाहते हैं कि सऊदी अरब सदस्य बने। चीन का आग्रह इंडोनेशिया, ईरान को भी सदस्य बनाने के लिए है। पर भारत का आग्रह है कि चयन की प्रक्रिया में कुछ हद तक निष्पक्षता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, जब दक्षिण अफ्रीका एक सदस्य के रूप में योग्य हो गया, तो एक बड़ी अर्थव्यवस्था नाइजीरिया को इससे बाहर क्यों होना चाहिए? गौरतलब है कि साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने से पूर्व समूह का नाम चारों सदस्य देशों ब्राजील, रूस, चीन और इंडिया के पहले अक्षर के नाम पर ब्रिक था और 2010 में साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने पर इसका नाम ब्रिक्स रखा गया था।
ब्रिक्स देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के एक चौथाई से अधिक और दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगस्त में होने वाले शिखर सम्मेलन में नए देशों की सदस्यता के साथ जो अन्य मुद्दा प्रमुखता से उठेगा, वह है ब्रिक्स देशों की अपनी एक मुद्रा लाना और वैश्विक व्यापार में डॉलर का विकल्प पेश करना।
ब्रिक्स ही नहीं, अफ्रीका में भी भारत ने चीन का असर सीमित करने की दिशा में रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से कर्ज के मामले में अफ्रीका दूसरा सबसे बड़ा समूह बन गया है। भारत ने 42 अफ्रीकी देशों में पिछले 10 सालों में 32 अरब डॉलर बांटे हैं। यानि, भारत ने जितना कर्ज दिया है, उसका 38 प्रतिशत ऋण भारत ने सिर्फ अफ्रीका को दिया है। जबकि चीन ने 2020 तक 134 अरब डॉलर को लोन अफ्रीकी देशों को दिए हैं।

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