2002 में गुजरात के गोधरा में ट्रेन की बोगी में आग लगाने के 8 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है।हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने 4 दोषियों की जमानत याचिका को उनकी भूमिका को देखते हुए खारिज कर दिया।चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला दिया। इन 8 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और ट्रायल कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था। इस जघन्य कांड में अयोध्या से आ रहे 58 तीर्थ यात्रियों को जिंदा जलाकर मार डाला गया था। घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों की अर्जी का खारिज कर दिया था। इन सभी लोगों को ट्रायल कोर्ट से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने बाद में उसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इन लोगों को ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा दी थी, जिसे उच्च न्यायालय ने कम कर दिया था। हाई कोर्ट के उसी फैसले को गुजरात सरकार ने चुनौती दी है। यही नहीं गुजरात सरकार ने तो इन दोषियों की बेल अर्जी का भी विरोध किया था। वहीं दोषियों के वकीलों ने कहा कि ये लोग पहले ही जेल में 17 साल काट चुके हैं।

गुजरात सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इन लोगों ने गंभीर अपराध किया था। उन्होंने कहा कि इन लोगों ने ना सिर्फ ट्रेन पर पत्थर फेंके बल्कि बोगी का दरवाजा भी बंद कर दिया था ताकि लोग बाहर न निकल सकें। तुषार मेहता ने कहा कि इन लोगों ने जो अपराध किया है, वह जघन्य से जघन्य है। ऐसे में इन लोगों को बेल नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इन लोगों के खिलाफ टाडा के तहत केस दर्ज हुआ था। इससे इनके अपराध की गंभीरता का पता चलता है।

बता दें कि 27 फरवरी 2022 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर पहुंची साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की कुछ बोगियों को आग के हवाले कर दिया गया था। इस घटना में अयोध्या से आ रहे 58 कारसेवकों की जिंदा जलकर मौत हो गई थी। इसके चलते गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। ट्रेन अग्निकांड के 31 आरोपियों को स्थानीय अदालत ने दोषी ठहराया था और 63 को बरी कर दिया था। कुल 31 दोषियों में से 11 को फांसी की सजा दी गई थी और बाकी बचे 20 लोगों को उम्रकैद की सजा मिली थी।

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