यूपी में पुलिस कस्टडी में हत्या की वारदातों की लिस्ट बहुत लंबी है। इसने कानून व्यवस्था पर समय-समय पर कई सवालिया निशान उठाएं है। अगर 22 साल पहले की बात करें तो कानपुर के शिवली थाने में विकास दुबे ने दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ल की हत्या कर सनसनी फैला दी थी। उसके बाद 2005 में कानपुर के डी-2 गैंग के सरगना रफीक की पुलिस कस्टडी रिमांड के दौरान ताबड़तोड़ फायरिंग कर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी।
जैसे पिछले दिनों अप्रैल में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या की गई थी। इसके साथ ही जेल और कोर्ट भी अपराधियों की धमक से अछूते नहीं रहे। इसका ही नतीजा है कि माफिया और शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हुई और बाद में उसके विरोधी जीवा की 7 जून कोर्ट में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
कानपुर के शिवली थाने के अंदर 12 अक्टूबर 2001 को भाजपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री (श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन) संतोष शुक्ला की विकास दुबे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उसकी दहशत लोगों के साथ पुलिस वालों में भी थी। पुलिस कर्मियों ने गवाही तक नहीं दी और वह बरी हो गया।
साल 2005 में डी-2 गैंग के सरगना रफीक को एसटीएफ के सिपाही धर्मेंद्र सिंह चौहान की हत्या के मामले में कोलकाता से गिरफ्तार किया था। एसटीएफ की टीम रिमांड पर लेकर कानपुर जूही यार्ड में उससे एके-47 की बरामदगी के लिए गई थी। जहां डी 34 गैंग के सरगना परेवज, बहार खान और गुलाम ने हमला बोलकर उसकी हत्या कर दी। हालांकि पुलिस ने बाद में परवेज को एनकाउंटर कर दिया।
बागपत जेल में मुख्तार अंसारी के शूटर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी की सुनील राठी ने गोलियों से भून दिया था। जौनपुर के पूरेदयाल गांव निवासी मुन्ना बजरंगी जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या कर सुर्खियों में आया था। उसके बाद भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद मोस्टवांटेड बन गया था।
चित्रकूट जेल में बंद मुख्तार के करीबी मेराज और मुकीम काला की अंशू दीक्षित ने कर दी। जिसमें जिगाना पिस्टल का प्रयोग हुआ। हालांकि पुलिस की क्रास फायरिंग में अंशू दीक्षित मारा गया। इस केस में अभी तक पुलिस पता नहीं लगा पाई कि अत्याधुनिक हथियार जेल कैसे पहुंचे।
प्रयागराज में 15 अप्रैल की रात करीब साढ़े दस बजे माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की रिमांड के दौरान हत्या सबसे चर्चित हत्याकांड रहा। इसके बाद पुलिस अभिरक्षा में हत्या ने पुलिस की कार्यप्रणाली और प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए।
17 जनवरी 2015 को मथुरा जेल में बंद हाथरस का राजेश टोंटा की एके-47 से गोली मारकर हत्या कर दी गई। जब उसे पुलिस अभिरक्षा में उपचार के लिए आगरा लाया जा रहा था। वह जेल में हुई फायरिंग में घायल हुआ था और बंदी अक्षय सोलंकी की मौत हुई थी। उसी दिन रात टोंटा पर इलाज के लिए आगरा ले जाते वक्त हमला बोला गया था।
एक अक्टूबर 2012 में मथुरा के फरह क्षेत्र में श्रीधाम एक्सप्रेस में पुलिस अभिरक्षा में मोहित की हत्या कर शव चलती ट्रेन से फेंक दिया। इस हमले में सिपाही सिपाही फैज मोहम्मद की भी गोली लगने से मौत हुई थी। मोहित सपा नेत्री की हत्या के आरोप में जेल में बंद था और पेशी पर पुलिस अभिरक्षा में जा रहा था।
पिछले दिनों लखनऊ हाईकोर्ट में शूटर जीवा की गोली मारकर हत्या की गई। बस्ती कचहरी परिसर में 28 फरवरी 2019 को वकील जगनारायण यादव की चैंबर में गोली मार कर हत्या हुई। 17 दिसंबर 2019 में बिजनौर सीजेएम कोर्ट रूम में हत्यारोपी शहनवाज को गोली मार कर हत्या की गई। 23 नवंबर 2007 को लखनऊ, वाराणसी और अयोध्या कोर्ट में हुए बम धमाकों में 15 लोगों की मौत की घटना ने कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था को और कड़े किए जाने के लिए मजबूर कर दिया।
जुलाई 2014 में फैजाबाद की जिला अदालत में पूर्व विधायक सोनू सिंह व ब्लाक प्रमुख मोनू सिंह की कचहरी परिसर में बम और गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई।
लखनऊ की कोर्ट में मुख्तार के शूटर संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की वकील की ड्रेस में विजय यादव नाम के युवक ने छह गोली मारकर हत्या कर दी। इसमें एक दरोगा, दो सिपाही, एक बच्ची और उसकी मां समेत पांच लोग घायल हुए।
पुलिस कस्टडी में अपराधी की हत्या होने पर जिम्मेदार पुलिस कर्मियों के खिलाफ धारा 302, 304, 304ए और 306 के तहत केस चलाया जा सकता है। वहीं पुलिस अधिनियम के तहत लापरवाही के चलते अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।