केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकारों में मंत्री रह चुके राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद एक बार फिर से यूपीए-3 की सरकार बनने की बहुत ज्यादा संभावना जताई है।
रविवार को पूर्व कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि 2024 में यूपीए-3 की सरकार आना ‘बहुत संभव’ है, क्योंकि विपक्षी दलों में एक समानता नजर आ रही है। वह बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार तय करने में ‘आदान-प्रदान’ के लिए तैयार नजर आ रहे हैं।
हालांकि, सिब्बल विपक्ष के कद्दावर नेता और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम वाली बातों से सहमत नहीं दिख रहे हैं और उनका कहना है कि विपक्षी पार्टियों को सीएमपी के बजाए ‘भारत के लिए नई परिकल्पना’ के बारे में बात करनी चाहिए।
सिब्बल की यह प्रतिक्रिया 23 जून को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में करीब 16 विपक्षी दलों के प्रमुखों के साथ होने वाली बैठक से ठीक पहले आई है। उस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा, पार्टी नेता राहुल गांधी, टीएमसी चीफ ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल और एनसीपी चीफ शरद पवार भी पहुंचने वाले हैं।
न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में सिब्बल ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत को लेकर कहा है कि यह इस बात का उदाहरण है कि बीजेपी को हराया जा सकता है। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि इसके चलते 2024 को लेकर कोई बड़ा बयान देने को लेकर सावधान रहना होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव पूरी तरह से अलग आधार पर लड़ा जाता है।
उन्होंने ये भी कहा कि 2024 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नहीं, बल्कि ‘उस विचारधारा के खिलाफ (है), जिसे वह कायम करना चाहते हैं।’ न्यूयॉर्क से फोन पर उन्होंने बताया, ‘जिन राज्यों और चुनाव क्षेत्रों में एक ही सीट के लिए दो या दो से ज्यादा राजनीतिक दलों के उम्मीदवार चुनाव लड़ना चाह रहे हैं, वहां टिकट बांटने के वक्त आदान-प्रदान की आवश्यकता है। जब एक बार इन तीनों चीजों पर सहमति बन जाएगी, मैं सोचता हूं कि यूपीए-3 बहुत संभव है।’
जब उनसे पूछा गया कि जिन राज्यों में विपक्षी दलों के बीच बहुत ज्यादा मतभेद है, वहां क्या व्यावहारिक रूप से साझा उम्मीदवार संभव है। इसपर सिब्बल ने मतभेद की बातों को
अतिशयोक्तिपूर्ण बता दिया और कहा कि कई राज्यों में खास राजनीतिक दलों का ही वास्तविक दबदबा है।
उनके मुताबिक, ‘जैसे कि राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की असल विरोधी कांग्रेस ही है। इन राज्यों में कोई मुद्दा नहीं है।’ उनका कहा है कि ‘गैर-कांग्रेसी राज्यों जैसे कि पश्चिम बंगाल में सब जानते हैं कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख भागीदार है। वहां बहुत कम ही चुनाव क्षेत्र होंगे, जिसपर किसी तरह का विवाद होगा।’
वे बोले कि इसी तरह तमिलनाडु में कोई समस्या नहीं होगी। वहां कांग्रेस और डीएमके कई बार मिलकर लड़ चुके हैं। उन्होंने कहा, ‘तेलंगाना में समस्या हो सकती है। आंध्र प्रदेश में कोई विपक्षी गठबंधन की संभावना नहीं है, क्योंकि वहां जगन की पार्टी (वाईएसआरसीपी), कांग्रेस और टीडीपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला संभव है।’
उनके मुताबिक, ‘यूपी में असली विपक्ष समाजवादी पार्टी है। राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस जूनियर पार्टनर के रूप में ठीक रहेंगे।’ उन्होंने कहा कि मायावती तो पहले ही सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि वह सभी लोकसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारेंगी, इसलिए बसपा से कोई गठबंधन संभव नहीं है।
सिब्बल का कहना है कि ‘बिहार में कांग्रेस की कोई वास्तविक मौजूदगी नहीं है। इसलिए मैं नहीं सोचता कि इस मोर्चे पर किसी तरह की दिक्कत होगी।’ हाल ही में पीएम मोदी की ओर से देश में हाल के वर्षों में राजनीतिक स्थिरता और देश के लिए इसके महत्त्व वाली टिप्पणी पर भी सिब्बल ने सवाल उठाए हैं।वो बोले, ‘मोदी के कार्यकाल में हमने जिस तरह की अस्थिरता देखी है, वह यूपीए के कार्यकाल में नहीं देखी गई थी।’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘मोदीजी ने क्या स्थिरता उपलब्ध कराई है? देखिए मणिपुर में क्या हो रहा है। केंद्र सरकार, हथकंडों से, जो कम से कम कहने के लिए घृणित और स्पष्ट रूप से भ्रष्ट हैं, चुनी हुई सरकारों को हटाती है। चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने से शासन में स्थिरता नहीं आती। इसने देश में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के बीज बोए हैं।’
हालांकि, क्या कांग्रेस को विपक्षी दलों की अगुवाई करनी चाहिए, इसपर सीधा जवाब तो वे टाल गए। लेकिन, यह जरूर कहा कि सिर्फ यही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका दायरा पूरे भारत में है। क्योंकि, उनके मुताबिक आम आदमी पार्टी कुछ ही राज्यों तक सीमित है।
सिब्बल ने पार्टी नेतृत्व से गहरे मतभेदों के बाद पिछले साल मई में कांग्रेस छोड़ दी थी और समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यूपी से राज्यसभा के लिए चुने गए थे। हाल ही में उन्होंने एक गैर-राजनीतिक संगठन ‘इंसाफ’ बनाया है, जिसके बारे कहा गया है कि उसका लक्ष्य अन्याय के खिलाफ लड़ना है।