लखनऊ। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में केंद्र और प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों के इलाकों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है चुनाव कराने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से भेजे गए कई राष्ट्रीय पदाधिकारी भी अपने क्षेत्र में प्रत्याशियों को नहीं जीता सके। दरअसल, निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का पूरा ध्यान मानते हुए लड़ा गया था। पार्टी ने चुनाव के पहले केंद्र मंत्रियों सांसदों और विधायकों को उनके क्षेत्र की निकायों में जीत की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन नतीजे चौंकाने वाले सामने आए। चुनाव हारने के बाद प्रत्याशियों ने इसका ठीकरा विधायक और सांसदों पर फोड़ना शुरू कर दिया है।
बता दें कि, अवध क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में आरोप लगाए जा रहे हैं कि सांसदों विधायकों ने न सिर्फ अपने परिजनों और करीबियों को रणनीति के तहत चुनाव लड़ाया, बल्कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की हार के लिए पर्दे के पीछे सारे जतन करते हुए नजर आए। जिन क्षेत्रों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, उनमें केंद्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा और प्रदेश सरकार के एमएसएमई मंत्री राकेश सचान भी अपने क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को नहीं बता सके। वहीं, केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी भी लखीमपुर में अपने प्रत्याशी को जीता नहीं पाए। साथ ही औद्योगिक विकास राज मंत्री जसवंत सैनी भी अपने क्षेत्र में प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सके। राज मंत्री प्रतिभा शुक्ला के क्षेत्र में भी बीजेपी के नगर पंचायत अध्यक्ष पद प्रत्याशी ज्योत्सना कटियार को रनिया नगर पंचायत की प्रत्याशी साधना दिवाकर ने हरा दिया।
वहीं, देवरिया में दमदार मंत्रियों के बाद भी नगर पंचायत में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी अपने क्षेत्र की सीट को बचाने में कामयाब न हो सके। हारे प्रत्याशियों की माने तो कई विधायक चुनाव आते ही बीमारी का बहाना बनाकर निष्क्रिय हो गए तो कहीं सिर्फ औपचारिकता मात्र करते नजर आए। अब बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या भाजपा ऐसे माननीयों के खिलाफ कार्रवाई करके बड़ा संदेश देने की कोशिश करेगी, क्योंकि आने वाले समय में लोकसभा का चुनाव है और बीजेपी पहले ही 80 में से 80 जीतने का दावा करती नजर आ रही है, ऐसे में क्या ये दावा सही साबित होगा कि नहीं ये तो वक़्त ही बताएगा।