दक्षिण गुजरात की भरूच लोकसभा सीट पर सियासी पारा वक्त से पहले ही चढ़ चुका है। आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी की चुनावी रण जीतने ही हसरतें भी बढ़ गई हैं। विरोधियों की यहां जो तैयारियां दिख रही है उससे लगने लगा है कि भाजपा के तीसरी बार क्लीन स्वीप के ख्वाब को यहां से चुनौती मिल सकती है। आम आदमी पार्टी के आदिवासी चेहरे चैतर वसावा में पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल यहां अपनी पार्टी का सियासी भविष्य तलाश रहे हैं। केजरीवाल ने भरूच के सियासी रण में पहले से ही ताल ठोक रखी है। जहां से विरोधी भाजपा के तीसरी बार क्लीन स्वीप की हैट्रिक के ख्वाब को चुनौती दे सकते हैं।

अगर आप सोच रहे होंगे की इसके पीछे कांग्रेस की कोई बड़ी रणनीति है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, इसके पीछे आम आदमी पार्टी का एक आदिवासी चेहरा चैतर वसावा है, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी सियासी भविष्य देख रहे हैं। इसलिए उन्होंने लोकसभा चुनाव के कई दिनों पहले ही भरूच के सियासी रण में ताल ठोक दी थी।

आम आदमी पार्टी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीती थी। इनमें से विसावदर से विधायक भूपत भायाणी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि दो और विधायक किसी भी वक्त पार्टी से किनारा कर सकते हैं। अरविन्द केजरीवाल ने अब खुद मोर्चा संभाल लिया है और जल्द ही उनके प्रदेश में कुछ और दौरों का कार्यक्रम बनाया जा रहा है। लोकसभा चुनावों के ऐलान से पहले ही आप ने गुजरात की भरूच और भावनगर लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दूसरे दलों से बढ़त ले ली है। भरूच से पार्टी विधायक चैतर वसावा को मैदान में उतारकर आप ने आदिवासी कार्ड खेला है। पिछले दिनों जेल जाकर आए वसावा को केजरीवाल अब समूचे क्षेत्र में आदिवासियों का मसीहा बताने में जुट गए हैं।

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गुजरात के सियासी हलकों में इस बात की खासी चर्चा है कि क्या इस बार के सियासी मैदान में आप और कांग्रेस संयुक्त रूप से मोर्चा संभालेगी। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से भरूच और भावनगर संसदीय सीट से पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया है, उससे कांग्रेस और आप के गठबंधन में दरार के संकेत मिले हैं। कांग्रेस पार्टी भरूच से दिग्गज कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की बेटी को मैदान में उतारना चाह रही है।

इस बीच ही आम आदमी पार्टी ने अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया। इतना ही नहीं, आप नेता यह तर्क देते हैं कि अहमद पटेल की बेटी की भरूच में कतई पहचान नहीं है। वह इसलिए भी क्योंकि मुमताज दिल्ली रहती है। आप पार्टी, आदिवासी क्षेत्र में अपना हक बता रही है। ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी के बीच गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने के सवाल पर फिलहाल संशय के बादल मंडरा रहे हैं।

सियासी समीकरणों पर जनता की नब्ज टटोलने के लिए वडोदरा से करीब 1.30 घंटे का सफर कर मैं एकता नगर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जिसे देखकर साफ लग रहा था कि इसका निर्माण हाल ही के दिनों में हुआ है। स्टेशन से निकलते ही ऑटो ड्राइवर जितेंद्र भाई तड़वी से बातचीत का प्रयास किया। तड़वी ने बताया कि पहल मजदूरी करता था लेकिन इस इलाके में पर्यटन उठाव पर देख ऑटो चलाना शुरू कर दिया। है। खेती- बाड़ी भी कर लेते है।

उनका कहना था कि सरदार सरोवर डैम जरूर बन गया लेकिन ग्रामीणों को इसका पानी नहीं मिल रहा। केवडिया सहित आसपास के चार गांवों में मैंने सरपंच सहित कई लोगों से मुलाकात कर यहां के प्रमुख मुद्दे जानने की कोशिश की। केवडिया गांव की सरपंच मेघना तड़वी ने बताया कि पर्यटन के नाम पर किसानों की जमीन ली गई।

लेकिन उन्हें पुनर्वास के नाम पर छोटे- छोटे घर दिए गए हैं। मुआवजा राशि कम बताते हुए किसानों ने रकम लेने से इंकार कर दिया और दूसरी जगह पर जमीन मांगी है। लेकिन इस संबंध में बात आगे बढ़ी नहीं जिससे किसानों में नाराजगी है।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनने के बाद इस क्षेत्र में पर्यटन को पंख लग गए हैं। स्टैच्यू के काफी पहले प्राकृतिक सौदर्य मन मोहने वाला था। इस दृश्य के बीच सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा रोमांचित कर रही थी। यहां देश के कोने-कोने से प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते हैं। यहां पिंक कलर का ऑटो अलग ही आकर्षण बना है जिसकी सभी ड्राइवर महिलाएं होती हैं।

बातचीत में पता चला कि यहां करीब 150 पिंक ऑटो हैं जिन्हें महिलाएं ही चलाती हैं। ये सब आसपास के गांवों की हैं। इन ऑटो चालकों साल 2018 के पहले तक हम घर पर रहते थे, लेकिन यहां स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनने के बाद ऑटो चालक महिलाओं के चेहरे पर इस बात का संतोष नजर आया कि पहले वे घर में बैठती थीं और अब अपने पैरों पर खड़ीं हैं।

गुजरात में कई जाति आधारित संगठनों ने अपनी-अपनी जाति का राजनीति में दखल कायम कर रखा है। चाहे अल्पेश ठाकोर की अगुवाई वाला ओबीसी संगठन हो या हार्दिक पटेल की अगुवाई वाला पाटीदार समुदाय और फिर जिग्नेश मेवाणी की अगुवाई वाला दलित समुदाय। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार तय करने में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखना होता है।

पिछले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने करीब 40 पाटीदार, 49 ओबीसी, 24 एसटी, 13 एससी, 13 ब्राह्मण और 17 क्षत्रियों समेत अन्य छोटी जातियों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर प्रचंड जीत हासिल की थी। भाजपा ने लोकसभा के लिए भी इस आधार पर अपनी जमीन तैयार कर ली है।

अपने गढ़ गुजरात में इस बार भी क्लीन स्वीप की तैयारियों में जुटी भाजपा के नेता व कार्यकर्ता आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे हैं। इसकी बड़ी वजह प्रदेश में लम्बे समय से भाजपा की सत्ता तो है ही कमजोर विपक्ष भी है। हां, इतना जरूर है कि पार्टी के कई मौजूदा सांसदों के टिकट पर इस बार कैंची चलने की चर्चा है। इसका डर भी संासदों में नजर आता है। अभी तो यही कहा जा रहा है कि भाजपा इस बार करीब एक दर्जन से ज्यादा मौजूदा सांसदों का टिकट काट सकती है।

विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने पूर्व सीएम विजय रूपाणी, पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, पूर्व मंत्री प्रदीप सिंह जड़ेजा और गुजरात भाजपाके पूर्व अध्यक्ष आरसी फल्दू सहित 45 विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारा था। इनमें से 43 चुनाव जीतने में कामयाब भी रहे थे।

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