उज्जैन के महाकाल मंदिर में होली पर गर्भगृह में हुए अग्निकांड के बाद अब प्रशासन व्यवस्था परिवर्तन करने की तैयार कर रहा है। प्रशासन मंदिर में दर्शनों के लिए नए नियम तैयार कर रहा है। नए नियमों के मुताबिक मंदिर में अब सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर आरती, श्रृंगार, भोग व पूजन सहित जल चढ़ाने के लिए गर्भगृह में जाने वाले पंडे-पुजारियों की संख्या तय होगी। बताया जा रहा है कि समिति भस्म आरती व वी.आई.पी. दर्शन में कोटा सिस्टम भी समाप्त करेगी।

रिपोर्ट के मुताबिक मंदिर के गर्भगृह में हुए अग्निकांड की जांच में पाया गया है कि हादसे के वक्त गर्भगृह में निर्धारित संख्या से अधिक लोगों की मौजूदगी थी तथा नंदी हाल में अत्यधिक रंगों का उपयोग हुआ था। ऐसा माना जा रहा है कि आग लगने का कारण कैमिकलयुक्त रंग भी हो सकते हैं। जांच में यह भी अंदेशा जताया जा रहा है कि कैमिकलयुक्त गुलाल का उपयोग  गर्भगृह में खड़े पुजारियों में से ही किसी ने किया था। प्रारंभिक जांच के बाद मंदिर समिति ने मंदिर में रंग, गुलाल उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। समिति द्वारा जारी की गई नई गाइड लाइन के मुताबिक केवल पुजारी ही भगवान महाकाल को प्रतीकात्मक रूप से टेसू के फूलों से बना प्राकृतिक रंग अर्पित कर पाएंगे। इसके अलावा रंगपंचमी पर भस्म आरती दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु अपने साथ रंग, गुलाल लेकर मंदिर नहीं आ सकेंगे।

मंदिर समिति को प्रशासन ने दर्शनों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी के सुझावों पर अमल करने के निर्देश दिए हैं। कमेटी ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का क्षरण रोकने के लिए भगवान को सीमित मात्रा में जल, पंचामृत, अबीर, गुलाल, कुमकुम आदि पूजन सामग्री तथा कम मात्रा में फूल तथा भगवान को छोटी-छोटी फूल माला अर्पित करने का सुझाव दिया है। एक्सपर्ट कमेटी ने गर्भगृह का तापमान नियंत्रित रखने के लिए कम संख्या में लोगों के गर्भगृह में प्रवेश करने की सिफारिश की है।

गौरतलब है कि होली पर हुई आगजनी की घटना में 14 पुजारी, पुरोहित व इनके सेवक झुलसे हैं। जिस समय अग्निकांड हुआ गर्भगृह में बड़ी संख्या में सोलाधारी मौजूद थे। बताया जा रहा हे कि होली के दिन नंदी हाल में कुछ श्रद्धालु रंग के सिलेंडर लेकर आए थे। आग लगने पर सभी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था। कर्मचारियों ने समय रहते अग्निशमन यंत्रों से आग पर काबू पा लिया था, अन्यथा बड़ा हादसा भी हो सकता था।

 

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