आम आदमी पार्टी (आप) ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में आरोप लगाया कि सरकार की नीयत प्रस्तावित कानून को लागू करने की नहीं बल्कि सिर्फ श्रेय लेने की है।
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के प्रावधान वाले विधेयक को संसद में पेश किए जाने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने राज्यसभा में आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की नीयत प्रस्तावित कानून को लागू करने की नहीं बल्कि श्रेय लेने की है।
इसके साथ ही पार्टी ने लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण आगामी लोकसभा चुनाव से ही मौजूदा स्थिति में लागू करने की मांग की।
आप सदस्य संदीप पाठक ने लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के प्रावधान वाले ‘संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023’ पर उच्च सदन में चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि यह विधेयक हड़बड़ी में लाया गया और इसके लिए सरकार की पर्याप्त तैयारी नहीं थी।
पाठक ने कहा कि विधेयक को जिस तरीके से पेश किया गया, उसकी क्या जरूरत थी। उन्होंने कहा कि सरकार इसे पेश करने में पूरी गोपनीयता बरत रही थी और विपक्ष के नेताओं को भी इसकी जानकारी मीडिया से मिली। उन्होंने कहा कि यह सरकार मीडिया का ध्यान भटकाती रहती है और एक उद्योगपति से जुड़े मुद्दे के जोर पकड़ने पर उसने ‘वन नेशन वन इलेक्शन (एक देश एक चुनाव)’ की चर्चा शुरू कर दी।
उन्होंने कहा कि देश एवं समाज के लिए यह एक महत्वपूर्ण विधेयक है और वह इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने महिला आरक्षण का विचार रखा था जिसे पूरा होने में 35 साल लग गए।
आप सदस्य ने इसे ‘गुमराह’ करने वाला विधेयक करार दिया और आशंका पैदा की कि किसानों की आय दोगुनी करने, काला धन लाने, करोड़ों की संख्या में रोजगार मुहैया कराने जैसे जुमलों के साथ कहीं महिला आरक्षण का मुद्दा भी जुमला न बन जाए। उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण के लागू होने में जनगणना और परिसीमन जैसे अवरोध लगाए गए हैं।
पाठक ने कहा कि सरकार के अनुसार प्रस्तावित कानून 2029 से लागू होगा लेकिन उसके पहले ही कोई अड़चन आ जाए तो और देरी हो सकती है। उन्होंने कहा कि आरक्षित सीटों के ‘रोटेशन’ (बारी-बारी से सीटों का आरक्षण) को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि परिसीमन को राजनीति का औजार नहीं बनाया जाना चाहिए।
आप सदस्य ने कहा कि महिला आरक्षण के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही विरोधाभास है और उसके कई वरिष्ठ नेताओं ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राय व्यक्त की है।
भाजपा सरकार की कथनी एवं करनी में अंतर होने का आरोप लगाते हुए पाठक ने कहा कि महिला पहलवानों के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने कहा कि हरियाणा में एक मंत्री और भाजपा के एक लोकसभा सदस्य के खिलाफ महिलाओं के यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप हैं लेकिन भाजपा ने कोई कार्रवाई नहीं की।
तृणमूल कांग्रेस सदस्य डोला सेन ने विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि इस सरकार ने कई कानून बनाए लेकिन उन्हें लागू नहीं किया गया। बांग्ला भाषा में दिए गए अपने संबोधन में तृणमूल सदस्य ने आशंका जताई कि प्रस्तावित कानून का हश्र भी नागरिकता कानून, कृषि कानून और श्रम कानून जैसा न हो जाए।
नोटबंदी सहित विभिन्न मुद्दों पर सरकार की तीखी आलोचना करते हुए सेन ने कहा कि वह तमाम विरोध के बीच इस विधेयक का समर्थन करते हैं।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) कनिमोई सोमू ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह आरक्षण महिलाओं का अधिकार है और यह उन पर कोई कृपा नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून के 2029 में लागू होने की बात की जा रही है और ऐसी स्थिति में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह कानून कब लागू होगा।
द्रमुक सदस्य ने अपने राज्य तमिलनाडु में महिलाओं को अधिकारसंपन्न बनाने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का जिक्र किया और कहा कि उसका लाभ समाज में दिखता है।
बीजू जनता दल (बीजद) की ममता मोहंता ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी पार्टी के प्रमुख नवीन पटनायक शुरू से ही महिला सशक्तीकरण के पक्षधर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बीजद में लोकसभा एवं राज्य विधानसभा के चुनावों में महिलाओं को पर्याप्त संख्या में टिकट दिया है।