रसोई का जायका बिगाड़ रहे टमाटर के भाव में फिलहाल राहत मिलने के संकेत नहीं है। झांसी में अभी कर्नाटक का टमाटर आ रहा है, लेकिन इसके ट्रकों ने भी रास्ता बदलकर दिल्ली की राह पकड़ ली है। वहां बाढ़ के हालात बनने से टमाटर की डिमांड बढ़ गई है। हालांकि जनपद में फिलहाल टमाटर की कोई कमी नहीं रहेगी, लेकिन दामों में भी कुछ दिन तक गिरावट नहीं आने की सम्भावना जतायी जा रही है।
सब्जी मंडी टमाटर से भरी रहती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इसकी कमी हो गई है। वर्तमान में टमाटर लगभग 1800 किलोमीटर दूर कर्नाटक के कोलार, चिंतामणी, बाद पल्ली से आ रहा है, जिसके झांसी पहुंचने में 36 घंटे का सफर तय करना पड़ता है। दिल्ली में शिमला के सोलन से टमाटर जा रहा था, लेकिन वहां पर बाढ़ आ जाने से टमाटर आना बंद हो गया, जिससे दिल्ली में भी टमाटर की डिमांड बढ़ गयी है। और अब इस कमी को पूरा करने के लिए दिल्ली व कोलकाता के व्यापारी भी कर्नाटक से माल मंगवा रहे हैं, जिससे आने वाले दिनों में टमाटर के दामों में कोई गिरावट नहीं आने के आसार बन गए है।

अब व्यापारियों की निगाहें आन्ध्र प्रदेश पर लग गयी है। यहां से टमाटर की फसल जुलाई माह के आखिरी सप्ताह में तैयार होने के बाद देश भर में उसका निर्यात शुरू हो जाता है। इसके बाद नवरात्रि तक महाराष्ट्र के औरंगाबाद के साथ ही शिवपुरी और निवाड़ी के ग्राम असाटी और भोपाल के ग्राम बरेली से टमाटर का आना शुरू होता है। आवक बढ़ने से टमाटर के भाव 5 से 10 रुपए किलो तक हो जाते हैं।

वर्तमान में कर्नाटक से टमाटर आने पर जितने रुपए का टमाटर खरीदकर ट्रक, डीसीएम में लादा जा रहा है, उतना ही खर्च लगभग भाडे पर आ रहा है। दूर से टमाटर आने से दाम बढ़े हुए हैं, जैसे ही पास के क्षेत्रों से आना शुरू होगा, तो इसके बाद दाम गिर जाएंगे।

व्यापारियों की मानें तो इस बार कुछ दिनों पहले आए विपरजॉय तूफान से सबसे अधिक महाराष्ट्र में टमाटर की खेती खराब हो गयी। इसके बाद लगातार बारिश से महाराष्ट्र के साथ शिमला, राजस्थान में भी टमाटर की खेती को नुकसान हुआ, जिससे पैदावार कम और डिमांड ज्यादा होने से इसके दामों ने एकाएक उछाल आ गया है।

टमाटर को लाने में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। क्रेट में इनको इस तरह से लगाया जाता है, ताकि वह गाड़ी चलने पर हिचकोलों से वह फूट न जाएं। व्यापारियों के अनुसार दिक्कत यह होती है कि एक अगर टमाटर फूट गया तो उसका रस जितने टमाटरों पर पड़ेगा, वह भी खराब हो जाते हैं। कच्चा काम और रिस्क अधिक होने से व्यापारी ज्यादा दूरी से टमाटर को मंगवाने में कतराते हैं।

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