इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सिविल अस्पताल व बलरामपुर अस्पताल के निराश्रित वार्ड की कार्य प्रणाली का ब्योरा तलब किया है।
इस मामले की अगली सुनवाई चार सितंबर को होगी। पीठ ने दोनों अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर, यह भी बताने को कहा है कि नवंबर 2023 से अब तक कितने मरीज इन निराश्रित वार्डों में भर्ती किए गए और निराश्रितों के इलाज के सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा जारी 21 नवंबर 2023 व छह दिसंबर 2023 के शासनादेशों पर किस प्रकार से अमल किया जा रहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने ज्योति राजपूत की जनहित याचिका पर पारित किया। याची द्वारा न्यायालय को बताया गया कि उक्त शासनादेशों का पूर्णतया पालन नहीं किया जा रहा है।
याचिका में कहा गया कि याची ने स्वयं एक मानसिक अस्वस्थ महिला को भर्ती कराया था लेकिन बाद में पता चला कि उक्त महिला स्वयं ही कहीं चली गई और अस्पताल प्रशासन द्वारा उसे रोका भी नहीं गया।
वहीं, सरकार की ओर से बताया गया कि उक्त महिला के चले जाने के बाद हजरतगंज थाने में सूचना दी गई थी व उक्त महिला को भी लवकुश द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने पुनः भर्ती करा दिया था। इस पर न्यायालय ने हजरतगंज थाने से भी जवाब मांगा है।
वहीं, इसी खंडपीठ ने एक अन्य जनहित याचिका पर लखनऊ स्थित किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) को भी निराश्रितों के इलाज के संबंध में नयी व्यवस्था बनाने को कहा है। उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि आठ दिसंबर 2023 को यहां भी एक महिला मरीज को भर्ती कराया गया था लेकिन वह भी अपनी मर्जी से चली गई।
इस पर अदालत ने कहा कि इस संबंध में केजीएमयू को भी व्यवस्था बनानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कुलपति को भी मामले में शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है। दोनों मामलों की अगली सुनवाई चार सितंबर को होगी।