आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। एक तरफ एनडीए (NDA) के जवाब में पीडीए (पिछड़ा, दलित ,अल्पसंख्यक) का नारा दिया और वहीं दूसरी तरफ महाब्राह्मण समाज से समर्थन भी मांग रहे हैं। इस बीच सपा प्रमुख के पास सबसे बड़ी चुनौती है कि भाजपा से निपटना है। साथ ही, उन्हें पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान से भी निपटना पड़ रहा है।

दरअसल, समाजवादी पार्टी में प्रबुद्ध वर्ग की बैठक और महाब्राह्मण महापंचायत में स्वामी प्रसाद मौर्या के विवादित बयानों का भी मुद्दा उठा। इस पर पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने स्पष्ट किया कि पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या की ओर से दिया गया बयान सही नहीं है। किसी भी धर्म-जाति वर्ग पर टिप्पणी करना गलत है। धर्म जैसा है उसे स्वीकार किया जाना चाहिए। दरअसल, इन दिनों समाजवादी पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय और प्रदेश के पदाधिकारी आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर बैठक कर रहे हैं। तमाम बैठकों में अखिलेश यादव स्वयं मौजूद रह रहे हैं। पार्टी के प्रदेश और राष्ट्रीय टीम के पदाधिकारियों का प्रयास प्रत्येक वर्ग और जाति के नेताओं को जोड़ने का है।

आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने इसके कोर वोट बैंक के रूप में मुस्लिम और यादव समाज को स्थापित किया। माय समीकरण सपा के साथ बना रहा तो पार्टी प्रदेश में पावरफुल बनी रही। लेकिन, वर्ष 2014 में ओबीसी की राजनीति को देश के स्तर पर नरेंद्र मोदी के भाजपा की राजनीति के केंद्र बिंदु बनने के साथ ही स्थापित कर दिया गया। समाजवादी पार्टी माय समीकरण तक सिमटी रही और भाजपा ने ओबीसी, सवर्ण और दलित वर्ग के बीच पैठ बना ली। इस कारण सपा अपने वोट बैंक में सिमटी रही और भाजपा का वोट बैंक इतना बड़ा हो गया कि उसको पार करने में मुश्किल हो गई।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लगातार ब्राह्मणों और हिंदू समाज के खिलाफ बयान दिया है। हिंदू देवी- देवताओं और धार्मिक ग्रंथों को निशाना बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक अलग ही माहौल बनाने का प्रयास किया। माना गया कि इससे समाजवादी पार्टी दलित समाज को जोड़ने में कामयाब हो जाएगा। रामचरितमानस विवाद हो, बद्रीनाथ धाम हो या फिर राम मंदिर पर दिया गया बयान स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों ने हिंदू वर्ग को आक्रोशित किया है। साधु- संतों को लेकर दिए गए उनके बयानों ने भी आक्रोश बढ़ाया है।

 

 

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